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मांगलिक दोष क्या है? कैसे होता है इसका परिहार?

मांगलिक दोष  व कैसे होता है इसका परिहार बता  रहे हैं, आचार्य श्री राजेश गौतम जी
सामान्यतः 60 से 70 प्रतिशत कुंडलियों में मंगल दोष की संभावना होती है, साथ ही उचित मार्ग दर्शन प्राप्त न होने के कारण व्यक्ति भ्रम की स्थिति में  पड़ जाता है। उचित उपाय व मार्ग दर्शन से संभवतः मन में उठ रही शंकाओं का समाधान किया जा सकता है साथ ही विवाह में होने वाले विलम्ब से भी बचा जा सकता था। इसीलिए सबसे पहले यहाँ यह जानना चाहिए की क्या वर एवं वधु की कुंडली मिलान में मांगलिक दोष का परिहार्य हो रहा है? शास्त्र अनुसार कुछ स्तिथियाँ ऐसी होती है जिनमे मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है जैसे:

लग्ने व्यये च पाताले यामित्रे चाष्टमे कुजे | स्त्री जातके भर्त्रीनाश; पुंसो भार्या विनश्यति ||

अर्थात्–”लग्न,अष्टम, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम,में  यदि वर-वधू की पत्री में  मंगल हो तो पत्री मंगली होती है | जो पुरुष व स्त्री को हानि कारक होगा अत: विवाह नहीं करना चाहिए। किन्तु परस्पर मिलान में २७ से अधिक गुण प्राप्त हों व दोनों के मंगल सामान स्थिति में हों तो कर सकते हैं? और यदि परस्पर कुण्डली में भौम के तुल्य मंगल प्राप्त न हो किन्तु अन्य पाप ग्रह जैसे-राहु, शनि, सूर्य में से कोई   भी ग्रह पाटनर की पत्री में उसी स्थान में होने से  विवाह कर सकते हैं |

यथा-”भौम तुल्यो यदा भौम: पापो वा तादृशो भवेत् | उव्दाह: शुभद: प्रोक्तश्चिरायु: पुत्र-पौत्रद:||

अत: यदि मंगल के तुल्य मंगल हो वा वैसा ही अन्य कोई पाप ग्रह हो तो विवाह शुभ, दीर्घायु, और पुत्र पौत्र प्रदान करेगा, एवं लग्न में मेष का, द्वादश में धनु का, चतुर्थ में वृश्चिक का, सप्तम में मीन का, तथा आठवें कुम्भ का मंगल हो तो दोष नहीं होगा। तथा ग्रन्थान्तर से मेष का लग्न में। धनु का व्यय में। वृश्चिक का चतुर्थ में। मकर का सप्तम में। कर्क का अष्टम में मंगल होने से भी मंगली नहीं होगा ||
इसी तरह यदि जन्मांग में बलवान गुरु वा शुक्र लग्न वा सप्तम हो किन्तु भौम-शुक्र की युति न हो, अथवा मंगल वक्री, अस्त, नीच, शत्रु घर का होने पर भी मंगली दोष नहीं वनायेगा ||
कुछ और भी परिहार शास्त्रों में प्राप्त हैं जैसे:
[१ ]-एक को मंगल दोष हो और दूसरे में न हो किन्तु यदि दुसरेके पत्री में कोई भी पाप ग्रह मंगल के स्थान में हो तो मंगली दोष मिट जायेगा ।
[2 ]-”जिस वर या कन्या के १,४,७,९,१२,स्थानों में शनि होगा उसका भौम दोष मिटा जायेगा / यथा–

”यामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने वा हिबुके तथा । नवमे द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्यते ||

व्दितीय भाव में चंद्र-शुक्र की युति हो व मंगल गुरु से दृष्ट हो, केंद्र में मंगल -राहु की युति हो अथवा केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह हों और ३,६,११,स्थान में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश स्वगृही हो तो मंगली दोष नहीं होगा।

राशि मैत्रं यदा याति गणक्यं वा यदा भवेत् । अथवा गुणबाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते || [मुहूर्त-दीपक ]

अर्थात उपरोक्त योग व ग्रह स्थिति यदि वर-वधू की पत्री में प्राप्त हों तो मंगली दोष प्रभावी नहीं होगा अर्थात बिना मंगली वर व वधू से विवाह कर सकते हैं।

प्रस्तुति आचार्य राजेश गौतम मथुरा