टॉयलेट एक प्रेम कथा - गलत आदत का बेहतर सुझाव देती दिखती है
प्रशांत शैलके की रिपोर्ट
गलत आदत का बेहतर सुझाव देती दिखती है टॉयलेट एक प्रेम कथा |
बात ज्यादा पुरानी नही है सुबह की सैर के लिए हम जंगल जाते थे। शौच के लिए बैठी महिलाओं के किसी के आने पर शर्म की वजह से खड़ा होना पड़ता था, लेकिन दूसरी तरफ़ लेकिन पुरुष बेशर्मी लाद कर बैठे रहते। कुछ दिनों बाद यहां एक व्यक्ति को छुपकर महिलाओं को देखते पकड़े जाने पर पीटा गया। खुले में शौच से जुड़ी एक और घटना मुझे बताई गई जब एक नई नवेली बहु शौच के लिए जाती है। रास्ते मे साइकिल आते देख खड़े होने के प्रयास पर साथी महिला कहती अरे बैठ जा बैठजा अपने गांव का मास्टर ही है।
बात इन सिर्फ तीन घटनाओं की नहीं है बल्कि हर उस सुबह और हर उस वक्त की है जब महिलाओं का सामना ऐसी घटनाओं से होता है। शर्म और लिहाज छोड़कर जब उन्हें हर सुबह अपने नित्य कर्म के लिए इज्जत को दांव पर लगाना होता है। इस पूरी समस्या पर टॉयलेट एक प्रेम कथा एक बड़ा प्रहार है लेकिन इस फिल्म का सिर्फ एक संवाद हमारी सामाजिक सोच पर जबरदस्त चोट करने के लिए काफी है। "सिर तो गले तक ढंक लो लेकिन पिछवाड़ा सार्वजनिक रूप से उघाड़ लो। ताकि जब कोई गांव का मर्द देखे तो अपने दोस्तों के बीच शान बघारे कि देखी तो है पर किसकी देखी पता नहीं।"

लेकिन क्या यह फिल्म सिर्फ सामाजिक उद्देश्य के चलते ही सौ करोड़ के क्लब में ये फ़िल्म शामिल हो गयी है? नहीं बल्कि इस फ़िल्म की सफलता के पीछे है लोगों को भावनात्मक रूप से इससे जोड़ना। चाहे वह अक्षय और भूमि के बीच की केमिस्ट्री हो, कहानी की ताकत हो या इसका प्रस्तुतिकरण। आमिर की फिल्म लगान की सफलता के दौर में सनी देओल की गदर भी देश प्रेम व देशहित की भावनाओं की इसी तीव्रता के कारण सफल हुई थी। टॉयलेट एक प्रेम कथा भी इसी के चलते जब हैरी मेट सेज़ल पर हावी हो गयी।

साइकिल की दुकान पर अक्षय और भूमि के संवाद ने जो प्रेम रसायन घोला उसे खुद महसूस किया जा सकता है। बरसाने की लट्ठमार होली की परंपरा को आधार बना कर पति पर लट्ठ बरसाकर अपनी खीझ उतारती पत्नी के दम्भ और द्वंद को गोरी तू लट्ठ मार गीत ने धार दी है। इस फ़िल्म का एक संवाद है औरत है इसलिए मंदिर से बाहर बैठा दिया, पीरियड से हुई तो घर के बाहर कर दिया, पेट हल्का करने की बारी आई तो गांव के बाहर भेज दिया। औरतों की सामाजिक स्थिति के सच का इससे बड़ा बखान और क्या हो सकता था।

पूरी फिल्म में सबसे दमदार दृश्य है बहु को शौच करते हुए ससुर का देखना और बाद में बहु का ससुर के सामने बिना घूंघट के चले आना। जो अभिनय भूमि ने यहां किया है वह समकालीन अभिनेत्रियों से कई प्रकाश वर्ष आगे दिखती है। शहर से आयी महिला का शौच जैसी नित्य क्रिया के लिए होने वाली मुसीबत के माध्यम से देश की हर उस महिला की मुसीबत दिखाई गई है जो इससे रोजाना दो चार होती है। स्टेशन पर ट्रेन में शौच से लेकर सुबह पति के साथ खेत तक का दृश्य ये बताता है कि महिलाओं को समझो और इससे उन्हें छुटकारा दिलाओ।

अनुपम खेर फ़िल्म में रोचक किरदार में है। फिल्म में उनके दो यादगार संवाद हैं। If you change nothing, Nothing will change. यदि आपने कुछ नहीं बदला तो कुछ भी नहीं बदलेगा। दिल मे मैल रखकर दिमाग को साफ सुथरा बताने वाले इस समाज के लिए उन्होंने क्या खूब संदेश दिया है। I may have a dirty mind, But I have a clean heart.
- प्रशांत शैलके, परासिया
गलत आदत का बेहतर सुझाव देती दिखती है टॉयलेट एक प्रेम कथा |
बात ज्यादा पुरानी नही है सुबह की सैर के लिए हम जंगल जाते थे। शौच के लिए बैठी महिलाओं के किसी के आने पर शर्म की वजह से खड़ा होना पड़ता था, लेकिन दूसरी तरफ़ लेकिन पुरुष बेशर्मी लाद कर बैठे रहते। कुछ दिनों बाद यहां एक व्यक्ति को छुपकर महिलाओं को देखते पकड़े जाने पर पीटा गया। खुले में शौच से जुड़ी एक और घटना मुझे बताई गई जब एक नई नवेली बहु शौच के लिए जाती है। रास्ते मे साइकिल आते देख खड़े होने के प्रयास पर साथी महिला कहती अरे बैठ जा बैठजा अपने गांव का मास्टर ही है।
बात इन सिर्फ तीन घटनाओं की नहीं है बल्कि हर उस सुबह और हर उस वक्त की है जब महिलाओं का सामना ऐसी घटनाओं से होता है। शर्म और लिहाज छोड़कर जब उन्हें हर सुबह अपने नित्य कर्म के लिए इज्जत को दांव पर लगाना होता है। इस पूरी समस्या पर टॉयलेट एक प्रेम कथा एक बड़ा प्रहार है लेकिन इस फिल्म का सिर्फ एक संवाद हमारी सामाजिक सोच पर जबरदस्त चोट करने के लिए काफी है। "सिर तो गले तक ढंक लो लेकिन पिछवाड़ा सार्वजनिक रूप से उघाड़ लो। ताकि जब कोई गांव का मर्द देखे तो अपने दोस्तों के बीच शान बघारे कि देखी तो है पर किसकी देखी पता नहीं।"
देश की सबसे बड़ी जरूरत और सबसे बड़ी मुसीबत पर करारा प्रहार करती है ये फ़िल्म।
लेकिन क्या यह फिल्म सिर्फ सामाजिक उद्देश्य के चलते ही सौ करोड़ के क्लब में ये फ़िल्म शामिल हो गयी है? नहीं बल्कि इस फ़िल्म की सफलता के पीछे है लोगों को भावनात्मक रूप से इससे जोड़ना। चाहे वह अक्षय और भूमि के बीच की केमिस्ट्री हो, कहानी की ताकत हो या इसका प्रस्तुतिकरण। आमिर की फिल्म लगान की सफलता के दौर में सनी देओल की गदर भी देश प्रेम व देशहित की भावनाओं की इसी तीव्रता के कारण सफल हुई थी। टॉयलेट एक प्रेम कथा भी इसी के चलते जब हैरी मेट सेज़ल पर हावी हो गयी।
साइकिल की दुकान पर अक्षय और भूमि के संवाद ने जो प्रेम रसायन घोला उसे खुद महसूस किया जा सकता है। बरसाने की लट्ठमार होली की परंपरा को आधार बना कर पति पर लट्ठ बरसाकर अपनी खीझ उतारती पत्नी के दम्भ और द्वंद को गोरी तू लट्ठ मार गीत ने धार दी है। इस फ़िल्म का एक संवाद है औरत है इसलिए मंदिर से बाहर बैठा दिया, पीरियड से हुई तो घर के बाहर कर दिया, पेट हल्का करने की बारी आई तो गांव के बाहर भेज दिया। औरतों की सामाजिक स्थिति के सच का इससे बड़ा बखान और क्या हो सकता था।
पूरी फिल्म में सबसे दमदार दृश्य है बहु को शौच करते हुए ससुर का देखना और बाद में बहु का ससुर के सामने बिना घूंघट के चले आना। जो अभिनय भूमि ने यहां किया है वह समकालीन अभिनेत्रियों से कई प्रकाश वर्ष आगे दिखती है। शहर से आयी महिला का शौच जैसी नित्य क्रिया के लिए होने वाली मुसीबत के माध्यम से देश की हर उस महिला की मुसीबत दिखाई गई है जो इससे रोजाना दो चार होती है। स्टेशन पर ट्रेन में शौच से लेकर सुबह पति के साथ खेत तक का दृश्य ये बताता है कि महिलाओं को समझो और इससे उन्हें छुटकारा दिलाओ।
अनुपम खेर फ़िल्म में रोचक किरदार में है। फिल्म में उनके दो यादगार संवाद हैं। If you change nothing, Nothing will change. यदि आपने कुछ नहीं बदला तो कुछ भी नहीं बदलेगा। दिल मे मैल रखकर दिमाग को साफ सुथरा बताने वाले इस समाज के लिए उन्होंने क्या खूब संदेश दिया है। I may have a dirty mind, But I have a clean heart.
- प्रशांत शैलके, परासिया