भारत को बचाना है तो भारतीय भाषाओं को बचाना होगा - राहुल देव
नई दिल्ली, आनन्द बंदेवार
टेड एक्स यूथ, जे पी आई एस के मंच पर मीडिया जगत के जानेमाने व्यक्तित्व ने श्री राहुल देव ने अपना वक्तव्य रखा।
मीडिया जगत की जाने-माने व्यक्तित्व राहुल देव ने कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर रोशनी डाली उन्होंने कहा कि यदि मनुष्यता को बचाना है तो मानव सभ्यताओं की भाषाओं को बचाइए यह ठीक वैसे ही है जैसे यदि प्रकृति को बचाना है तो इस प्रकृति पर बचने वाली विभिन्न जीव-जंतु और उनकी प्रजातियों को बचाइए। हर भाषा दुनिया से जुड़ने वसमझने का बिलकुल नया नजरिया देती है। जब एक भाषा समाप्त हो जाती है तो पूरा एक जीवन दर्शन और एक सभ्यता समाप्त हो जाती है, चाहे वह बड़ी समृद्ध सभ्यता हो या या कोई छोटी आदिवासी कबीले की सभ्यता हो।
आज पूरे विश्व पर एक संकट है और वह यह है कि दुनिया में हर 15 दिन में एक भाषा ख़तम हो जाती है। जानकारी के अनुसार कुछ सौ साल पहले पुरे विश्व में लगभग ६००० भाषाएं हुआ करती थी, आज उससे बहुत कम लगभग ३००० ही बची हैं, और भविष्यवाणीयां यह भी है कि अगले एक सौ वर्षों में दुनिया की ८०% भाषाएँ समाप्त हो जाएँगी, इनमे से अधिकतर छोटी भाषाएँ हैं जिनके बोलने वालों की संख्या बहुत काम है। केवल 20% भाषाएं ही बच पाएगी जो शायद उन 20% लोगों की होगी जो दुनिया के 80% संसाधनों का उपभोग करते हैं।
राहुल जी ने कहा कि आज सारी दुनिया भारत को बड़ी ही उम्मीद की निगाहों से देखती है, दुनिया को भारत और भारतीयों से जो उम्मीद है वह अन्य किसी दूसरे देश से नहीं है। पूरा विश्व इस इंतजार में है कि कब भारत विश्व पटल पर अपनी एक खास जगह बनाता है, पूरी दुनिया को यह भरोसा दिखाई पड़ता है कि भारत शीघ्र ही एक महाशक्ति के रूप में अपने आप को स्थापित करेगा और इस बात के लिए शायद अधिक समय इंतजार ना करना पड़े शायद अगले एक दशक मैं यह संभव है।
उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए यह कहा कि आज हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि हम जैसे कुछ प्रतिशत पढ़े-लिखे लोग जब आम जनों से मिलते हैं जोकि हिंदी भाषी है उन्हें देखते हैं उनसे बात करते हैं तो हमारे मन में और हमारे दिमाग में क्या विचार आता है? क्या हम उन्हें अपने बराबर के स्तर का समझते हैं? केवल इस वजह से कि हम थोड़ा अच्छी अंग्रेजी लिख, बोल, और समझ सकते हैं और वह व्यक्ति केवल हिंदी भाषी है या कोई क्षेत्रीय भाषा बोलता है।
आज हमारे समाज ने एक मूर्खता को आत्मसात कर लिया है कि अगर हमारे बच्चे को अंग्रेजी की शिक्षा नहीं मिली तो उसकी तरक्की नहीं हो पायेगी और जैसे गाड़ी छूट जाएगी। जबकि लगभग 200 सालों से भारत में अंग्रेजी भाषा ५-७% से आगे नहीं बढ़ पायी है। राहुल जी ने कहा कि वह स्वयं भी अंग्रेजी भाषा के विद्यार्थी रहे हैं और उन्होंने इसमें पत्रकारिता भी की है वह स्वयं इस भाषा को बहुत पसंद करते हैं। अंग्रेजी भाषा ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन जितना दिया है उसके मुकाबले बहुत कुछ लिया भी है। इस कड़ी में एक कड़वा सच यह भी है कि हमारे देश में प्रोफेशनल कोर्सेज में एडमिशन लेने वाले कई छात्र केवल इस वजह से आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे यह मानते हैं कि और अन्य विद्यार्थियों के मुकाबले उनकी अंग्रेजी कमजोर है जिसके लिए उन्हें उलाहना दी जाती है, जिसका जिक्र कई बच्चों ने अपने सुसाइट नोट में किया है। ऐसे कई हजार बच्चे हैं जो इस वजह से रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरते हैं और उनका आत्मविश्वास कमजोर हो रहा है।
राहुल जी ने कहा यदि केवल 20-25 लाख लोग जब अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करके अपनी प्रतिभा के बल पर भारत विकास की ओर आगे ले जा सकते हैं तो जरा कल्पना करें कि यदि करोड़ों भारतीयों को हिंदी भाषा में ही सीखने के, अपनी प्रतिभा के विकास के समान अवसर दे दिए जाएं तो वह कितनी बड़ी चमत्कारिक स्थिति होगी। समझने के लिए यह बड़ा ही गहरा विषय है एक भाषा हमारी सभ्यता और हमारे व्यक्तित्व के लिए एक गर्भनाल है जो हमसे हमेशा जुड़े रहती है, जिससे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यदि भाषा ही बदल जाए तो हम भी पूरी तरह से बदल जाते हैं।
उन्होंने सन 2050 के भारत की कल्पना करते हुए कहा कि 2050 तक भारत विश्व के पटल पर एक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो चुका होगा हमारे गांव सुख सुविधाओं से संपन्न हो चुके होंगे और वहां पर भी गांवों में भी शहरों की कराही आधुनिक टेक्नोलॉजी और विकास हो चुका होगा। लेकिन इन सबके बीच जरा कल्पना कीजिए कि क्या हमारी आने वाली पीढ़ी अपना कोई भी काम किसी भी एक भारतीय भाषा में कर रहे होंगे, क्या वे कभी यह जान पाएंगे कि हमारी समृद्ध भाषाओं की विरासत क्या थी।
भारत को अगर भारत रहना है तो वह अपनी भाषाओं को बचाकर अपनी भाषाओं में रहकर ही बचा सकता है, भारत को यदि सचमुच ताकतवर बनना है तो उसे भारत को अपने लोगों की चिंतन, रचनात्मकता, काल्पनिकता,तकनीकी बौद्धिक क्षमता और दार्शनिक दृष्टिकोण के बल की आवश्यकता होगी।
राहुल जी ने छात्रों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप अंग्रेजी में या विश्व की अन्य भाषाओं से शिक्षा हासिल करना वह अवश्य करें लेकिन जब अन्य देशों में आप जाएं तो अपने मूल को ना भूलें, क्योंकि हमारी भाषाओं ने ही उस सोने की चिड़िया को बनाया था जिसकी हम बात आज सुनते हैं, हमारी भाषा इतनी समृद्ध रही है की उसने पूरे विश्व को हर प्रकार के ज्ञान का मूल प्रदान किया है।
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टेड एक्स यूथ, जे पी आई एस के मंच पर मीडिया जगत के जानेमाने व्यक्तित्व ने श्री राहुल देव ने अपना वक्तव्य रखा।
अगर भारत को बचाना है तो भारतीय भाषाओं को बचाइए
मीडिया जगत की जाने-माने व्यक्तित्व राहुल देव ने कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर रोशनी डाली उन्होंने कहा कि यदि मनुष्यता को बचाना है तो मानव सभ्यताओं की भाषाओं को बचाइए यह ठीक वैसे ही है जैसे यदि प्रकृति को बचाना है तो इस प्रकृति पर बचने वाली विभिन्न जीव-जंतु और उनकी प्रजातियों को बचाइए। हर भाषा दुनिया से जुड़ने वसमझने का बिलकुल नया नजरिया देती है। जब एक भाषा समाप्त हो जाती है तो पूरा एक जीवन दर्शन और एक सभ्यता समाप्त हो जाती है, चाहे वह बड़ी समृद्ध सभ्यता हो या या कोई छोटी आदिवासी कबीले की सभ्यता हो।
हर 15 दिन में एक भाषा ख़तम हो जाती है।
आज पूरे विश्व पर एक संकट है और वह यह है कि दुनिया में हर 15 दिन में एक भाषा ख़तम हो जाती है। जानकारी के अनुसार कुछ सौ साल पहले पुरे विश्व में लगभग ६००० भाषाएं हुआ करती थी, आज उससे बहुत कम लगभग ३००० ही बची हैं, और भविष्यवाणीयां यह भी है कि अगले एक सौ वर्षों में दुनिया की ८०% भाषाएँ समाप्त हो जाएँगी, इनमे से अधिकतर छोटी भाषाएँ हैं जिनके बोलने वालों की संख्या बहुत काम है। केवल 20% भाषाएं ही बच पाएगी जो शायद उन 20% लोगों की होगी जो दुनिया के 80% संसाधनों का उपभोग करते हैं।
दुनिया को भारत और भारतीयों से बहुत उम्मीद है।
राहुल जी ने कहा कि आज सारी दुनिया भारत को बड़ी ही उम्मीद की निगाहों से देखती है, दुनिया को भारत और भारतीयों से जो उम्मीद है वह अन्य किसी दूसरे देश से नहीं है। पूरा विश्व इस इंतजार में है कि कब भारत विश्व पटल पर अपनी एक खास जगह बनाता है, पूरी दुनिया को यह भरोसा दिखाई पड़ता है कि भारत शीघ्र ही एक महाशक्ति के रूप में अपने आप को स्थापित करेगा और इस बात के लिए शायद अधिक समय इंतजार ना करना पड़े शायद अगले एक दशक मैं यह संभव है।
उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए यह कहा कि आज हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि हम जैसे कुछ प्रतिशत पढ़े-लिखे लोग जब आम जनों से मिलते हैं जोकि हिंदी भाषी है उन्हें देखते हैं उनसे बात करते हैं तो हमारे मन में और हमारे दिमाग में क्या विचार आता है? क्या हम उन्हें अपने बराबर के स्तर का समझते हैं? केवल इस वजह से कि हम थोड़ा अच्छी अंग्रेजी लिख, बोल, और समझ सकते हैं और वह व्यक्ति केवल हिंदी भाषी है या कोई क्षेत्रीय भाषा बोलता है।
केवल अंग्रेजी को सर्वोपरि मानना सामजिक मूर्खता है
आज हमारे समाज ने एक मूर्खता को आत्मसात कर लिया है कि अगर हमारे बच्चे को अंग्रेजी की शिक्षा नहीं मिली तो उसकी तरक्की नहीं हो पायेगी और जैसे गाड़ी छूट जाएगी। जबकि लगभग 200 सालों से भारत में अंग्रेजी भाषा ५-७% से आगे नहीं बढ़ पायी है। राहुल जी ने कहा कि वह स्वयं भी अंग्रेजी भाषा के विद्यार्थी रहे हैं और उन्होंने इसमें पत्रकारिता भी की है वह स्वयं इस भाषा को बहुत पसंद करते हैं। अंग्रेजी भाषा ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन जितना दिया है उसके मुकाबले बहुत कुछ लिया भी है। इस कड़ी में एक कड़वा सच यह भी है कि हमारे देश में प्रोफेशनल कोर्सेज में एडमिशन लेने वाले कई छात्र केवल इस वजह से आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे यह मानते हैं कि और अन्य विद्यार्थियों के मुकाबले उनकी अंग्रेजी कमजोर है जिसके लिए उन्हें उलाहना दी जाती है, जिसका जिक्र कई बच्चों ने अपने सुसाइट नोट में किया है। ऐसे कई हजार बच्चे हैं जो इस वजह से रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरते हैं और उनका आत्मविश्वास कमजोर हो रहा है।
हमारी भाषा हमारी सभ्यता और हमारे व्यक्तित्व के लिए एक गर्भनाल है।
राहुल जी ने कहा यदि केवल 20-25 लाख लोग जब अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करके अपनी प्रतिभा के बल पर भारत विकास की ओर आगे ले जा सकते हैं तो जरा कल्पना करें कि यदि करोड़ों भारतीयों को हिंदी भाषा में ही सीखने के, अपनी प्रतिभा के विकास के समान अवसर दे दिए जाएं तो वह कितनी बड़ी चमत्कारिक स्थिति होगी। समझने के लिए यह बड़ा ही गहरा विषय है एक भाषा हमारी सभ्यता और हमारे व्यक्तित्व के लिए एक गर्भनाल है जो हमसे हमेशा जुड़े रहती है, जिससे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यदि भाषा ही बदल जाए तो हम भी पूरी तरह से बदल जाते हैं।
कैसा होगा २०५० का भारत
उन्होंने सन 2050 के भारत की कल्पना करते हुए कहा कि 2050 तक भारत विश्व के पटल पर एक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो चुका होगा हमारे गांव सुख सुविधाओं से संपन्न हो चुके होंगे और वहां पर भी गांवों में भी शहरों की कराही आधुनिक टेक्नोलॉजी और विकास हो चुका होगा। लेकिन इन सबके बीच जरा कल्पना कीजिए कि क्या हमारी आने वाली पीढ़ी अपना कोई भी काम किसी भी एक भारतीय भाषा में कर रहे होंगे, क्या वे कभी यह जान पाएंगे कि हमारी समृद्ध भाषाओं की विरासत क्या थी।
भारत को अगर भारत रहना है तो वह अपनी भाषाओं को बचाकर अपनी भाषाओं में रहकर ही बचा सकता है, भारत को यदि सचमुच ताकतवर बनना है तो उसे भारत को अपने लोगों की चिंतन, रचनात्मकता, काल्पनिकता,तकनीकी बौद्धिक क्षमता और दार्शनिक दृष्टिकोण के बल की आवश्यकता होगी।
राहुल जी ने छात्रों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप अंग्रेजी में या विश्व की अन्य भाषाओं से शिक्षा हासिल करना वह अवश्य करें लेकिन जब अन्य देशों में आप जाएं तो अपने मूल को ना भूलें, क्योंकि हमारी भाषाओं ने ही उस सोने की चिड़िया को बनाया था जिसकी हम बात आज सुनते हैं, हमारी भाषा इतनी समृद्ध रही है की उसने पूरे विश्व को हर प्रकार के ज्ञान का मूल प्रदान किया है।
पूरा विडिओ देखें
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