भगवान की बड़ी कृपा है
एक राजा था, उसका एक मंत्री भगवान का बड़ा भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान की बड़ी कृपा हो गई। एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गई। यह समाचार जब मंत्री को मिला तो वह अपने स्वभाव अनुसार बोलता है भगवान की बड़ी कृपा होगी यह बात राजा को बहुत बुरी लगी लेकिन वह चुप रहे। कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गई मंत्री ने फिर अपने स्वभाव अनुसार कहा कि भगवान की बड़ी कृपा हो गई। राजा को बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर भी उसने गुस्से को पी लिया और कुछ नहीं बोला। एक दिन राजा के पास मंगलवार बनकर आई राजा ने उसकी जांच करते हुए अपनी उंगली से उसकी धार को देखने लगा। तलवार की धार बहुत तेज होने के कारण राजा की उंगली कट गई, मंत्री पास नहीं खड़ा था और वह बोला भगवान की बड़ी कृपा हो गई। अब तो राजा के गुस्से का ठिकाना ना रहा, और इतने समय से अभी तक जमा हुआ क्रोध अचानक फूट पड़ा उसने तुरंत मंत्री को अपने राज्य से निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्य जल ग्रहण मत करना। मंत्री ने पुनः अपने स्वभाव अनुसार वही जवाब दिया कि भगवान की बड़ी कृपा हो गई। राजा का आदेश पाकर मंत्री अपने घर भी नहीं गया और राज्य से बाहर चला गया साथ में वह कोई वस्तु भी नहीं ले गया।
कुछ दिन बीत गए एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिए जंगल गया, जंगल में एक सूअर का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया। उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गए वहां जंगल में डाकू का एक दल रहता था, उस दिन डाकुओं ने काली देवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था संयोग से डॉक्टरों ने राजा को देख लिया। उन्होंने राजा को पकड़ कर बांध दिया, अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी जब सारी तैयारी हो चुकी तब डाकुओं के पुरोहित में राजा से पूछा - क्या तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा ने उत्तर दिया नहीं वह मर गया है। तब तो पुरोहित ने कहा कि इसका तो ह्रदय जला हुआ है। पुरोहित ने दूसरा प्रश्न पूछा क्या तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा ने कहा नहीं वह भी जीवित नहीं है। पुरोहित ने कहा यह तो आधे अंग का है अतः यह बली के योग्य नहीं है, परंतु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो। रोहित मेहरा जा के शरीर की जांच की तो देखा कि उसकी उंगली कटी हुई है पुरोहित बोला अरे यह तो अंग-भंग है यह बली के योग्य नहीं है इसे छोड़ दो, पुरोहित की बात मानकर डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।
राजा अपने घर लौट आया, लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मंत्री जहां भी हो उसको तुरंत ढूंढ कर हमारे पास लाओ। जब तक वह वापस नहीं आएगा तब तक मैं अन्य ग्रहण नहीं करूंगा। राजा के आदमियों ने शीघ्र ही मंत्री को ढूंढ लिया और उससे तुरंत राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मंत्री ने कहा भगवान की बड़ी कृपा होगी और राजा के सामने उपस्थित हो गया। राजा ने बड़ी ही आदर पूर्वक मंत्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चाताप करते हुए जंगल वाली घटना सुना कर कहा की पहले मैं तुम्हारी बात को समझ नहीं पाया, अब समझ में आया कि भगवान कि मेरे ऊपर कितनी कृपा से भगवान की कृपा से अगर मेरी उंगली ना कटती तो उस दिन जंगल में मेरा गला कट जाता। परंतु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया तब तुमने कहा कि भगवान की बड़ी कृपा हो गई तो वह कृपा क्या थी? यह बात मेरे समझ में अभी तक नहीं आई।
मंत्री बोला- महाराज, यदि आप मुझे राज्य से नहीं निकालते तब उस दिन जब आप शिकार करने गए तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता क्योंकि मेरा घोड़ा भी आप के घोड़े से कम नहीं है मेरा घोड़ा भी आपके घोड़े जितना ही तेज दौड़ता है, फिर डाकू आपके साथ मुझे भी बलि के लिए पकड़ लेते। आप तो उंगली कटी होने के कारण बच जाते, पर मेरा तो उस दिन गला ही कट जाता इसीलिए भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था राज्य से बाहर था अतः मैं मरने से बच गया। आज बुलाओ मैं अपने स्थान पर वापस आ गया हूं यह सब भगवान की कृपा ही तो है।