माँ और बेटी के झीने रिश्ते की पक्की तुरपाई को बताती फ़िल्म - सीक्रेट सुपर स्टार
प्रशांत शैलके:
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
माँ ये एक शब्द नहीं उसमें बसा संसार है। ये शब्द रिश्तों का ऐसा ताना बाना बुनता है जिसमे जिसकी बुनाई में अभाव के बीच खिलखिलाता जीवन, जिम्मेदारियों के दबाव के बीच उभरती उम्मीदे और बच्चों के सपने पूरे करने के लिए खुद के सपनों को झोंक देने का जज्बा आकार लेता है।
मां और बेटी का रिश्ता कुछ खास होता है। दोनों एक दूसरे की राजदार होती है। दोनों एक दूसरे के सुख दुख की साथी होती है। माँ और बेटी के इस झीने रिश्ते की पक्की तुरपाई को बताती फ़िल्म है सीक्रेट सुपर स्टार। हर किसी के जीवन की सफलता में माँ एक छुपा हुआ प्रयास होता है। इंसिया के गायक बनने के सपने को उसकी मां लक्ष्य तक पहुंचाती है। इस सीधी सी बात को जबरदस्त भावनाओं के ज्वार के साथ प्रस्तुत किया गया गया है। माँ और बेटी के रिश्ते के हर मोड़ को बखूबी पेश किया गया है।
निदा फाजली की कविता की पंक्ति है बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ। उनकी इस कविता का फिल्मी रूपांतरण लगती है ये फ़िल्म। इसका एक गीत है, अम्मी के हाथों में जाने कैसी बरकत है, दाल खिचड़ी में भी दावतों की लज्जत है। चेहरे पर फिकरों की लकीरें है फिर भी, अम्मी मेरी दुनिया मे सबसे खूबसूरत है। घरेलू हिंसा क्या है, बच्चों पर ये क्या प्रभाव डालता होगा इसे एक दृश्य ये अपने अंदर महसूस किया जा सकता है। परिवार पार्टी में जाने की तैयारी करता है। बाहर निकलते समय अचानक बाप को लगता है कि पत्नी को नेकलेस पहनना चाहिए। पत्नी बेटी के लैपटॉप के लिए उसे बेच चुकी होती है। बाप से पिटती माँ, कमरे में गुस्से से कांपती बेटी और दरवाजे से झांकता छोटा बेटा इस हिंसा के परिणाम को बताते है। बाप के निर्देश पर फेंका गया लैप टॉप जब टूटता है तो इसके साथ सपनों के टूटने को दिल महसूस करता है और जब बेटी के गिटार के तार बाप उधेड़ता है तो खरोंचे खुद के सीने पर आती लगती है।
इतनी तकलीफों के बीच परिवार में रिश्ते भावनाओं के साथ मजबूती से जुड़े होते है। बहन के टूटे लैप टॉप को नन्हा भाई गोंद और टेप से जोड़ने की कोशिश करता है। रिश्तों के आपसी प्यार का यह दृश्य अपने आप मे पूरा महाकाव्य है। मुझे नहीं लगता थियेटर में बैठे एक भी व्यक्ति की आंखे गीली होने से बची होगी। स्कूल के गायन प्रतियोगिता का पर्चा लेकर अनुमति मांगने खड़ी लड़की जब बाप के फेंकी गई थाली का खाना उसी पर्चे से साफ करती है तो रिश्तों की दरिंदगी, लिजलिजेपन और फ्रस्टेशन को आप उस पर्चे में लिथड़ा पाते है।
फ़िल्म के दो संवाद है। माँ कहती है 3 बज गए सपने मत देख सो जा। बेटी का जवाब होता है सो जाऊंगी तो सपने आएंगे। फ़िल्म के एक अन्य दृश्य में माँ पिता को कहती है गिटार उसका ड्रीम है और ड्रीम के बिना जी नहीं सकते।
फिल्मकार ने इसे मां और मातृत्व पर समर्पित किया है। लेकिन इसके साथ ये फ़िल्म खुद को दबाने की जगह प्रगट हो जाने की बात भी कहती दिखती है। फ़िल्म का एक गीत है;
चोरी से चोरी से, छुप छुप के मैंने।
तिनका तिनका चुनकर सपना एक बनाया।
डोरी से डोरी से बुन बुनकर सपना एक सजाया।
एक और गीत की पंक्तियां है,
मैं चांद हूँ या दाग हूँ, मैं राख हूँ या आग हूँ।
मैं बूंद हूँ या हूँ लहर। मैं हूँ सुकून या हूँ कहर।
कोई ये बता दे में कौन हूँ।
कौसर मुनीर ने गीत शानदार लिखे है। मेघना मिश्रा ने इसे गाया भी गजब है। जायरा वसीम ने लक्ष्य की और बढ़ती लड़की के किरदार को जिया है। क्रूर बाप की भूमिका में अरुण राज नसीर की तरह परिपक्व लगे है। रंगीला का आमिर खान इसमें महसूस किया जा सकता है।
लड़के के हाथ पर उसके ही नाम का पासवर्ड लिखती लड़की और बस में एक स्टॉप आगे उतरने की बात पर सीट से टिककर युवती की मुस्कुराहट का दृश्य एक निश्छल प्रेम, उसकी स्वीकार्यता और उसमे सराबोर हो जाने को महसूस कराता है । फ़िल्म का एक गीत है जब मैं मुसीबत में होती हूँ तो मेरी माँ रोती है। खुशी में भी माँ मेरी दुपटटा भिगोती है। जीवन का सार इन शब्दों में समाया लगता है।