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छठ मैया की पूजा में भक्तिमय हुआ कोयलांचल भी

नहाए खाए से आज छठ पूजा शुरू हो गई। कद्दू भात खाकर आज से पर्व की शुरुआत हुई। सूर्य देवता की उपासना का यह पर्व बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है। बिहार का यह पर्व कोयलांचल को भी बिहारमय कर देता है।

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा की कोयला खदानों में उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग बड़ी संख्या में काम करते है। अपने मिट्टी से दूर बसे ये परिवार यहां भी अपनी संस्कृति को नहीं भूले है। जब छठ पर्व आता है तो इनकी संस्कृति और पर्व का उत्साह क्षेत्र को रंग देता है। दीपावली के बाद छठ का त्यौहार मनाया जाता है। सूर्य देवता की उपासना का यह पर्व और उसका व्रत बेहद कठिन माना जाता है। लोहंडा से इस पर्व की शुरूआत होती है. इस दिन व्रतरखकर रात में खीर बनाई जाती है। खीर खाकर व्रत छोड़ा जाता है। इसके बाद पुनः अगले दिन व्रत रखा जाता है।

कल होगा सांझ का अर्ध्य

व्रत रखने के बाद अस्ताचलगामी सूर्य की आराधना नदी पर जाकर की जाएगी। गुरुवार को पेंच नदी का तट महिलाओं से भर जाएगा। देर शाम तक नदी तट पर गहमागहमी होगी। दिन भर का व्रत इस दिन भी नहीं खोला जाएगा। अगले दिन सूर्योदय पर सूर्य को अर्ध्य अर्पित कर व्रत समाप्त होगा। छठ पूजा के लिए लोग अपने घर लौट आए है। बिहार के लोगों के लिए व्रत का इतना महत्व है कि जो लोग दीपावली पर घर नहीं आ पाए वे छठ पूजा पर घर आए है।

फैलेगी लिट्टी चोखा की महक

बिहार का व्यंजन लिट्टी चोखा अपने महक और चटपटे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। त्यौहार पर जब सब इकठ्ठा होंगे तो लिट्टी चोखा बनेगा। भंरवा बाटी और बेंगन के भुर्ते को बिहार में इस नाम से जाना जाता है। अंगुलियां चाटने लायक स्वाद वाले इस व्यंजन को खाने दूसरे भी बिहारी के परिवारों में पहुंचते है।

छठ के पर्व पर तिलक लगाने की अपनी परंपरा है। महिलाओं को नाक पर से सीधे मांग तक तिलक लगाया जाता है। कोयलांचल में कोयला खदानों में काम करने वालों की बस्तियों में इस समय छठ की धूम है।

ऐसे मनाते है छठ का पर्व

छठ पर होती है सूर्य की आराधना

छठ पर्व पर नदी किनारे जा कर नदी से मिट्टी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं। उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव  की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्घ्य  देते हैं और पाँच बार परिक्रमा करते हैं. सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते हैं और देवकरी में रख देते हैं। रात  को पूजा करते हैं.। कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्धालु अलस्सुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर  नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है। सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएँ हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करती हैं. जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक  खुशी दिखाई देती है और महिलाएँ अर्घ्य देना शुरू कर देती हैं. शाम को पानी से अर्घ देते हैं लेकिन सुबह दूध से अर्घ्य दिया जाता है. इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं. घर पहुँच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएँ प्रसाद ले कर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है. छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर  कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने  के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छः दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है।

हर तरफ गूंजे छठ मैया के गीत

कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है। इस गीत की पंक्तियां गुनगुनाते महिलाएं कहती है कि रात छठिया मईया गवनै अईली आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली बिलम्बली बिलम्बली कवन राम के अंगना जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे।