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उम्र भर सवालों में उलझते रहे

उम्र भर सवालों में उलझते रहे, स्नेह के स्पर्श को तरसते रहे


फिर भी सुकूँ दे जाती हैं तन्हाईयाँ आख़िर किश्तोंमें हँसते रहे।


आँखों में मौजूद शर्म से पानी, बेमतलब घर से निकलते रहे


दफ़्तर से लौटते लगता है डर यूँ ही कहीं बे-रब्त टहलते रहे।


खाली घर में बातें करतीं दीवारों में ही क़ुर्बत-ए-जाँ ढूढ़ते रहे


किरदार वो जो माज़ी में छूटे कोशिश करके उनको भूलते रहे।


जब भी मिली महफ़िल कोई, छुप के शामिल होने से बचते रहे 


करें तो भी क्या गुनाह तेरा और लोग फिकरे मुझपे कसते रहे।


कभी मंदिर के बाहर गुनगुनाते रहे तो कभी हरम में छुपते रहे


मिला ना कोई राही 'राहत' अरमान-ए-तुर्बत पर फूल सजते रहे।


                                                        - डॉ. रूपेश जैन 'राहत'


 

शब्दार्थ:

  • क़ुर्बत-ए-जाँ :- जीवन की निकटता (कोई अपना सा)

  • माज़ी :-अतीत

  • फिकरे :- व्यंग

  • अरमान-ए-तुर्बत :- आशाओं की क़ब्र