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गाफ़िल

ग़म में ग़ाफ़िल दीवाना इतना, कि


ग़म की अंधेरी रात में


ग़म ही चिराग़ हो गया।


जलती रही उसकी चिता रात भर


बिना किसी के आग दिए ही


अपने ग़म कि गर्मी से राख हो गया।


सहर की हवाओं ने उड़ा दी


उसकी चिता की राख


फ़िज़ा में दूर कही वो खो गया।


सर्द हवाओं ने हमें बताया


बदनसीब दीवानों का


क़िस्सा और एक ख़ाक हो गया।


 


डॉ. रूपेश जैन 'राहत'