इनकी हाथों में दो टुकड़ा आसमाँ दिया करें
जिनको जीना है,वो उनकी आँखों से जाम पिया करें
और इसी तरह अपने जीने का सामान किया करें
खुदा किसी के मकाँ का शौकीन तो नहीं रहा
तो दिल में ही कभी आरती तो कभी आज़ान किया करें
हमेशा दूसरों की नज़र में ही अहमियत जरूरी है क्या
कभी तो खुद को भी खुद का ही मेहमान किया करें
इश्क़ की बातें बड़ी मख़सूस हुआ करती है,ज़ानिब
जहाँ तक हो आपसे इसे आँखों से बयाँ किया करें
ये ज़मीन की शहजादियाँ बनेंगी हमारी सारी बच्चियाँ
बस रोज़ इनकी हाथों में दो टुकड़ा आसमाँ दिया करें
बड़ी ही हसीन लगेगी ये सर ज़मीन-ए-हिन्दोस्तान
अपनी गलियों में रोज़ होली और रमज़ान किया करें
- सलिल सरोज