मासूमों के चेहरे सियासी खून से क्यों धो रहे हो
अपने खेतों,अपने बगीचों में जहर क्यों बो रहे हो
मासूमों के चेहरे सियासी खून से क्यों धो रहे हो
तुमने ही खुद जलाई हैं सारी की सारी बस्तियाँ
अब अपना घर जला तो इस तरह क्यों रो रहे हो
बच्चियाँ लुट गईं, खत्म हो गईं सब तहज़ीबें
एक दिन सब अच्छा होगा,भ्रम में क्यों सो रहे हो
कल जो होना होगा वो तो होकर ही रहेगा
उसके इंतज़ार में मुट्ठी में बंद आज क्यों खो रहे हो
जब था इंक़लाब में आवाज़ उठाना तुम्हें, तुम चुप रहे
फिर आज इस तानाशाही पे बेचैन क्यों हो रहे हो
- सलिल सरोज