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मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था

मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था


ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ इज़हार करना चाहा था


धुएँ सी उड़ा दी आरज़ू पल में यार ने मिरि


तिरा इस्तिक़बाल शानदार करना चाहा था


भले लोगो की बातें समझ न आईं वक़्त पे


मैंने तो हर लम्हा जानदार करना चाहा था


तिरे काम आ सकूँ इरादा था बस इतना सा


तअल्लुक़ आपसे आबदार करना चाहा था


इंतिज़ार क्यूँ करें फ़स्ल-ए-बहाराँ सोचकर


चमन ये 'राहत' खुशबूदार करना चाहा था


                       - डॉ. रूपेश जैन 'राहत'