अदाकारी
ज़िंदगी के रंग मंच पर
आदमी है
सिर्फ़ एक कठपुतली ।
कठपुतली
अपनी अदाकारी में
कितने भी रंग भर ले
आख़िर;
वह पहचान ही ली जाती है, कि
वह मात्र एक कठपुतली है ।
ऐसे ही आदमी
चेहरे पर
कितने ही झूठे-सच्चे रंग भरे
अंत में,
रंगीन चेहरे के पीछे
असली चेहरा
पहचान ही लिया जाता है |
- डॉ. रूपेश जैन 'राहत'