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आधा प्रेम

मेरे खेत की मुँडेर पर

वो उदास शाम आज भी

उसी तरह बेसुध बैठी है

जिसकी साँसें सर्दी की

लिहाफ लपेटे ऐंठी है


मुझे अच्छी तरह याद है

वो शाम

जब तुम

दुल्हन की पूरी पोशाक में

कोई परी बनकर

आई थी


जब सूरज

क्षितिज पर कहीं

ज़मीन की आगोश में

गुम हो रहा था

चाँद अपने बिस्तर से

निकल कर

सितारों के साथ

अपनी छटाएँ

बिखेर रहा था

ठण्ड की बोझिल हवाएँ

मेरे बदन के रोएँ

खड़ी कर जाती थी

और

इन हालातों में

सिर्फ और सिर्फ

तुम याद आती थी


तुम्हारे होंठों पर

कहने के लिए

कई उम्र की बातें थी

आँखों में बहने के लिए

पूरा एक समंदर था

और

चेहरे की शिकन में

मजबूरियों का कोई पिटारा

जो बस खुलता

और खत्म कर जाता

हमारे इश्क के सारे

वो अफसाने

जो दुनिया की निगाहों में

खटक रहा था

मैं तुम्हारे काबिल नहीं

और

तुम मेरे काबिल नहीं

हर कोई

बस यही

कह रहा था


तुमने भींगे लफ़्ज़ों से

इतना ही कहा

ये हमारी आखिरी मुलाक़ात है

और

फिर उसके आगे

मैं कुछ न सुन सका


हर गुजरता लम्हा

मेरे साँस की आखिरी

तारीख़ लग रही थी


आँखें बर्फ सी जम गई थी

तुम्हारी आँखों में

और जिस्म सारा

इस संसार से ऊब चुका था


मैं बस इतना ही पूछ सका

"आखिर क्यों"

और

वो बस इतना ही बोल सकी

"लड़कियों को मोहब्बत भी

ज़माने से

पूछ कर करनी पड़ती है

और

उसकी कीमत ज़िन्दगी भर चुकानी पड़ती है


मैं कल किसी और की हो जाऊँगी

शरीर से जीवित रहूँगी

पर

आत्मा से मर जाऊँगी"


 - सलिल सरोज