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यहाँ पहुँचते-पहुँचते दरिया मर गया होगा

उसका वहशीपन देखकर मैं काँप गया हूँ

वो बच्चियों का क्या हश्र कर गया होगा


रेगिस्तान के सीने में कैद कितनी जुल्में है

यहाँ पहुँचते-पहुँचते दरिया मर गया होगा


आईने की धूल बहुत दफ़े साफ की उसने

आज अपना बेशक्ल चेहरा देखके डर गया होगा


जो गया वो शर्तिया ही नहीं लौटेगा अब

इस महफ़िल से बेआबरू हो कर ग़र गया होगा


कितनी देर तक कोई बचा सकता था भला

तबाह हुआ तूफान की जद में जो घर गया होगा


जब मौसम था बहारों का,तब  सींचा नहीं

कहाँ से अब वो फूल खिलेंगे जो झड़ गया होगा


                                           - सलिल सरोज