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तुझे चाहिए तो तू मेरा जिस्मों-जान रख

तुझे चाहिए तो तू मेरा जिस्मों-जान रख

पर अपनी तबियत में भी थोड़ा ईमान रख


तेरा घर क्यों बहुत सूना-सूना लगता है

मेरी मान,घर में कोई बेटी सा भगवान रख


कोई ज़ुल्फ़परस्त की दरिन्दगी नहीं डराएगी

घर के आहते में गीता तो आँगन में कुरआन रख


अपनी ही मेहनत पर यूँ न शक किया कर

लबों पे मिठास और जज़्बों में गुमान रख


ज़िन्दगी हर डगर आसान होती चली जाएगी

हर घड़ी बस अपने लिए नया इम्तहान रख


                                  - सलिल सरोज