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जैसे राधा, कृष्ण के अंग लगती होगी

एक हम ही तो नहीं बेकरार यहाँ

चाँदनी रातों में वो भी जागती होगी


दुआओं में निगाह जो उठती होगी

कुछ और नहीं वो हमें माँगती होगी


जिस चौखट पर मेरी यादें लगाईं हैं

वहाँ अपना अक्स भी टाँगती होगी


कोई गुलाल न खिलेगा उस चेहरे पे

गर खुद को वो मुझसे न रंगती होगी


मेरे और उसके का भेद मिटा ऐसा

जैसे राधा,कृष्ण के अंग लगती होगी


सलिल सरोज