Top Story

जिसे चाहिए वो खुद इस के तस्सवुर में आए

जिसे चाहिए वो खुद इस के तस्सवुर में आए

इश्क़ भी कभी औरों के भरोसे की गई है क्या


मेरी प्यास बुझाने को ये मैक़दे अभी नाकाफ़ी हैं

तुम्हारी निगाहों के सिवा भी मुझसे पी गई है क्या


चाँद होगा हुश्न का माहताब आसमाँ में

इस ज़मीं पे हुश्न की मिसाल तुम्हारे अलावे दी गई है क्या


तुम्हारे तबस्सुम में जो ये लपकता शरारा है

बताओ तो ज़रा ये आग सूरज को बुझा कर ली गई है क्या


कस्तूरी सी ये फ़िज़ाएँ महकने लगी है अचानक

देखना तो ये हवाएँ छूके तुम्हें भी गईं हैं क्या


सलिल सरोज