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जन्नत के बहाने

जन्नत के बहाने

क्यों दोज़ख़ की तरफ़ ले जाते हो

ए जिहाद वालों

क्यों तुम मासूमो को बरगलाते हों।

बताओ कौन से ख़ुदा ने कहा है

पाक है क़त्ल-ए-इंसाँ

ख़ुदाई में वो अपनी

मोहब्बत करने को तुमसे कहता है।

हूर की बात तुम करते हो

जो जन्नत में मिलेगी

पर क्यों छुपाते हो, दोज़ख़ भी न मिलेगा

इस ख़ूनी खेल के बाद।

इशरत-ए-इंसाँ है

मोहब्बत में मिट जाना

फिर क्यों नफ़रत में जल के

औरों को जलाते हो।

साजिशों में क्या रखा हैं

गुनाहों के अलावा

क्यों तुम इस कायनात में

गड़बड़ी फैलाते हो।

फ़राइज़ तले गुज़ारिश है

तुमसे जिहाद वालों

छोड़कर राह-ए-कुफ़्र

अमन से ज़िंदगी बिता लो।

 

डॉ. रूपेश जैन 'राहत'