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देखना ये है कि नफरत को ढाहता कौन है

तुम चले गए तो ये अहसास हुआ मुझे

ज़िन्दगी भर यूँ भी साथ रहता कौन है


सब को यही इल्म था कि सभी सही हैं

ज़माने में गलत को गलत कहता कौन है


खून में गर्मी बढ़ गई है इस कदर कि अब

बात गर छोटी भी हो तो सहता कौन है


ऐसे तो सारे ही सुखनबार है हमारे यहाँ

मुद्दा है कि बुरे वक्त में हमें चाहता कौन है


खड़ी तो कर दी सब ने ही मिलके दीवार

देखना ये है कि नफरत को ढाहता कौन है


- सलिल सरोज