छूते ही उसे जल तरंग बज उठता है
छूते ही उसे जल तरंग बज उठता है
पानी से बना सारा ही जिस्म हो जैसे
उसकी आँखों में देखूँ तो सब भूल जाऊँ
उसकी गहरी आँखों में तिलिस्म हो जैसे
वो हँसे तो गालों में लाली उभर आए
किसी गुलाब का ताज़ा किस्म हो जैसे
क्या नैन, क्या नक्स सब इस जहाँ से परे
खुदा ने तराशा कोई मुज्जसम हो जैसे
तुमसे ही दुनिया जीने के काबिल है अभी
तुम्हें देख बेकशी खुद भस्म हो जैसे
- सलिल सरोज