तू मेरी सुबह बनके आ तू मेरी शाम बनके आ
तू मेरी सुबह बनके आ तू मेरी शाम बनके आ
दूर आसमाँ में बैठे उस खुदा का पैग़ाम बनके आ
मेरी तिश्नगी का कोई हासिल है भी या नहीं
गर है तो तू मेरी कोशिशों का अंजाम बनके आ
तुझे चाहा जब से कोई और काम नहीं मुझे
जो ज़माने को भी दिखे तू वही काम बनके आ
मुफ़लिसों को भी हो थोड़ी मोहब्बत नसीब
हो सके जो पेशतर मुझे तू वो ही दाम बनके आ
मुझे एक तेरे नाम के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता
दुनिया के लिए तू ही अब मेरा भी नाम बनके आ
- सलिल सरोज