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जब भी बात की तो तेरी ही बात की

जब भी बात की तो तेरी ही बात की

बस यूँ हमने बसर दिन और रात की


पहले चिंगारी,फिर शोला और फिर आफ़ताब

उनके हुश्न की तारीफ की यूँ शुरुआत की


ख़्वाबों की गुमशुदा गलियों में भटके उम्र भर

तब जाके उनके नूरे-नज़र से मुलाक़ात की


न देखें उन्हें तो कुछ और दिखता ही नहीं

हमने अपने लिए खुद ही ऐसी हालात की


- सलिल सरोज