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कातिल निगाहों को उठाइए जरा

ये बच्चा सच बहुत बोलता है,यहाँ जी नहीं पाएगा

ज़माने के मुताबिक इसे झूठ भी सिखलाइए जरा


बेशुमार खुशी बयाँ कर दी सरे-महफिल आपने

हर एक खुशी में छिपा दर्द भी दिखलाइए जरा


ये सारे नए वायदों की सरकार है मेरे हुज़ूरे-वाला

एक बार वोट देके देखिए,फिर मुस्कुराइए जरा


कब तक दूसरों के भरोसे इंक़लाब लाई जाएगी

गर ज़ुल्म हुआ है तो खुद ही शोर मचाइए जरा


आप बुजुर्गों की बस्ती में हैं, इतना तो कीजिए

वो कहें कि बहुत हो चुका तो रूक जाइए जरा


कौन कहता है कि अब आपका हुश्न काम का नहीं

आप अपनी कातिल निगाहों को उठाइए जरा


- सलिल सरोज