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भारत की न्याय व्यवस्था लचर और सुस्त



लेखकीय: भरत सेन, अधिवक्ता, बैतुल

भारत में कांग्रेस कार्यकाल में प्रधान मंत्री मनमोहनसिंह के समय और भाजपा के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में एक समानता अवश्य हैं, वह हैं कि न्यायपालिका में कोई सुधार नहीं हुआ हैं। आम जनता न्यायपालिका से पीडि़त ज्यादा हैं। समस्या की जड़ में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट हैं। अपीलो के निराकरण में देरी से आम जनता परेशान हैं। Indian Law


भारत की न्याय व्यवस्था दुनिया भर में गलत दोषसिद्धि के लिए बदनाम हैं। अपराधिक विचारण प्रणाली में जमानत का कानून और आरोप तय करने की प्रक्रिया विवाद को जन्म देती हैं। सवाल उठते हैं कि जो जमानत याचिका जिला न्यायालय गुण दोष पर खारिज कर देती हैं, वह जमानत याचिका हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से स्वीकार क्यों हो जाती हैं? सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय प्रत्येक मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही जमानत क्यों प्रदान करती हैं? सत्र न्यायालय आरोपी को सजा सुना सकती हैं तो वह जमानत क्यों नहीं दे सकती हैं?
न्याय व्यवस्था पर सवाल उठते हैं कि जिन अपराधिक मामलों में अंतत: आरोपी को सजा नहीं सुनाई जा सकती हैं, एैसे मामले अदालतो में आखिर चलते ही क्यों हैं?


सवाल उठता हैं कि अपील के निराकरण में समय क्यों लगता हैं? इतना समय क्यों लगता हैं कि एक विचाराधीन बंदी की आधे से ज्यादा सजा सुनवाई के दौरान जेल में कट जाती हैं? बाद में भोगी गई सजा को पर्याप्त करके आरोपी को रिहा कर दिया जाता हैं, यह तो कोई समाधान नहीं हुआ हैं। कानून के कुछ प्रावधान एैसे हैं कि जिनका लाभ हमेशा उच्च आय वर्ग तथा नेताओं और प्रभावशाली लोगो को ही दिया जाता हैं जैसे कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट प्रभावशाली वर्ग के विरूद्ध मामलो को निरस्त करने में देरी नहीं लगाती हैं। वही आम आदमी को सुझाव दिया जाता हैं कि आप विचारण की कार्यवाही का सामना करें।


भारत सरकार में कानून मंत्री गैर अधिवक्ता बनते हैं, या फिर एैसे अधिवक्ता बनते हैं जिन्हे जिला न्यायालय, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पैरवी का कभी कोई अनुभव ही नहीं होता हैं। इसलिए इन्हे पता ही नहीं हैं कि वास्तविक समस्या कहां पर हैं? लोक सभा चुनाव चल रहे हैं लेकिन न्याय व्यवस्था में सुधार पर सभी राजनीतिक दल खामोश हैं। आम जनता को व्यवस्था परिवर्तन की आवाज उठाना चाहिए।
आपकी खामोशी आपका सबसे बड़ा अपराध हैं। आम जनता खामोश हैं, यही उसका सबसे बड़ा अपराध हैं। व्यवस्था परिवर्तन के लिए आवाज उठाना ही राष्ट्रभक्ति हैं।