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कुआँ सूख गया गाँव का, पानी खरीदते जाइए

कुआँ सूख गया गाँव का,पानी खरीदते जाइए

आने वाली मौत की कहानी खरीदते जाइए


बूढ़ा बरगद,बूढ़ा छप्पर सब तो ढह गए

शहर से औने-पौने दाम में जवानी खरीदते जाइए


नहीं लहलहाते सरसों,न मिलती मक्के की बालियाँ

बच्चों के लिए झूठी बेईमानी खरीदते जाइए


रिश्तों की बाट नहीं जोहते कोई भी चौक-चौबारे

आप भी झोला भरके बदगुमानी खरीदते जाइए


नींद लूट के ले गई  भूख पेट की

सुलाने के लिए दादी-नानी खरीदते जाइए


कहते हैं कि वो गाँव अब भी बच जाएगा

हो सके तो थोड़ी नादानी खरीदते जाइए


                                  - सलिल सरोज