मुकाबला खुद से हो तो जीत कहीं बडी होती है - सुपर 30
खुद से, जिंदगी, हालातों, सिस्टम से जीत की कहानी है सुपर 30
प्रशांत शेलके। तेरे लिए ये लडाई इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि तेरी ये लडाई खुद से है। सुल्तान में पहलवान के गुरू का ये कथन इंसान की असली लडाई की बात करता है। दंगल में राह से भटकी पहलवान को भी उसका पिता यही कहता है। सुई धागा हो या सीक्रेट सुपर स्टार सभी की मूल थीम यही है। इधर सुपर 30 का टाईटल सांग भी यही कहता नजर आता है। दरअसल ये सिर्फ एक संवाद नहीं है बल्कि ये वाक्य इंसान को अपने जज्बाती खोल से बाहर लाकर जेहन को खुद से मुकाबले के लिए तैयार करने वाला है। Hindi Film Super 30 review Prashant Shelke
बात सही भी है क्योंकि मुकाबला खुद से हो तो जीत कहीं बडी होती है। और ऐसी जीत कईयों का जीवन बदलने वाली और किवदंति की तरह हो जाती है। सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार की कहानी भी एक किवदंति ही है। नही तो किसने सोचा था कि कचरा बीनने वाले, बोरियां उठाने वाले, नाली साफ करने लोग भी आईआईटी तक पहुंच सकते है। दरअसल सुपर 30 न तो एक फिल्म है, न कहानी है, न किसी बडी घटना का सिहांवलोकन है न ये फिल्म किसी की इमेज बिल्डिंग का काम करती है। दरअसल ये कहानी उन हजारों लोगों के दिल की बात को जुबान तक लाने का माध्यम है जिनके पास प्रतिभा तो है लेकिन साधन नहीं है। इसका टाईटल सांग है बादलों पर रखकर कदम, आसमां को छू ले हम। खुद से है मुकाबला, दिल कहता है कुछ कर दिखा। कुछ कर के दिखाने की इस कहानी के हरबोले बने है रितिक रोशन।
इसका एक संवाद है रिलेटिव थ्योरी ये कहती है कि आप समय के साथ साथ चले और फिर समय से तेज चले तो एक समय ऐसा आएगा कि आप समय से आगे निकल जाएंगे। विज्ञान का ये सिद्धांत समय से आगे निकलने का प्रयास करने की बात कहता लगता है। फिल्म की शुरुआत में नायक के पिता साईकिल से डाक बांटने जाते है । साईकिल से उतरती चैन को वापस रिवर्स लेकर चढाने का यह दृश्य निर्देशक के जिनियस को बताता है। क्या संदेश ले सकते है इससे कि जब जिंदगी पटरी से उतरने लगे तो थोडा रिवर्स लेकर उसे रास्ते पर ले जाए। फिल्म का निर्देशन क्वीन रचने वाले विकास बहल ने किया है। उठो, पढो, लडो, बढों और हकदार बनो संवाद के माध्यम से उन्होंने पूरी फिल्म कह दी है।
इस फिल्म की कास्टिंग में बेहद सावधानी से काम किया गया है। सीरियल कुमकुम भाग्य की बिंदिया यानी मृणाल ठाकुर फिल्म की नायिका है। अपने आप में अभिनय का स्कूल कहे जाने वाले वीरेंद्र स्क्सेना पोस्टमैन है। उतरन के वीर सिंह बुंदेला यानी नंदिश सिंह को भाई प्रणव कुमार के रूप में देखना अच्छा लगता है। नेता बने पंकज त्रिपाठी को देखकर लगता है कि इसे यदि लकडी के ठूंठ का किरदार भी दिया जाए तो वह अभिनय करता नजर आएगा। सीआईडी के आदित्य श्रीवास्तव लल्लन कुमार के किरदार मे है। गोल्ड, सुल्तान में अपनी महारत दिखा चुके अमित सध को पत्रकार के रूप में देखकर लगता ही नहीं है कि ये वही है जो पिछली फिल्म में कोट पेंट टाई में था। तेनालीराम के राजा यानी मानव गोहिल भी इस फिल्म में है।
फिल्म का संगीत अजय अतुल ने दिया है। इससे पहले वे पीके से सुर्खियां बटोर चुके है। आने वाली सभी बडी फिल्में मसलन तानाजी, शमशीरा, झुंड, पानीपत सभी का संगीत उनका है। जुगराफिया गीत में उदित नारायण अर्से बाद सुनने को मिले है। बसंती नो डांस जैसा प्रयोग अकल्पनीय है। फिल्म के गाने अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे है। फिल्म की कहानी के अनुसार लिरिक्स में उन्होंने जान डाल दी है। नियम हो गीत की पंक्ति कोई हनल जिसमें हो समय उसका ही बदलता है, जो माटी नजर आता हो, वही पिघलकर सोना उगलता है ,दमदार बात कहता है।
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