तेरी मिट्टी, एक सैनिक की अभिलाषा, नए राष्ट्रगीत की और बढता एक गीत
EDITORIAL प्रशांत शैलके। राष्ट्रीय पर्व देश भक्ति के तरानों की याद, इसके माध्यम से देशभक्ति की अनुभूति और गुजरे जमाने की याद का एक अवसर होता है। ये गीत आंखों में नमी लाते है तो भुजाएं भी फडकाते है। आजादी के दौरान गीतों का भी अपना इतिहास रहा है। गीत और नारों ने कई दिलों में आजादी की अलख जगाई और कई शीश सिर्फ सिर्फ इन गीतों के गुनगुनाने के कारण ही मातृभूमि पर न्यौछावर भी हो गए। Kesari Akshay Kumar Movie
बंकिम चंद्र के आनंद मठ का वंदे मातरम जंगे ए आजादी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। सिर्फ इस गीत के कारण लोग शहीद भी हुए। दुर्भाग्य है कि संघर्ष में जिस गीत को हिंदु मुसलमान ने साथ गाया आजादी के बाद कुछ सिरफिरों को इसमें धार्मिक पहलू दिख गया और उस गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा मिला जो अंग्रेज साहब के आगमन पर उनके यशोगान के लिए लिखा गया था।
इन दिनों केसरी के गीत तेरी मिट्टी की जबरदस्त चर्चाएं है। बी प्राक ने इसे जिस तरह से गाया है ये गाना एक नए राष्ट्रगीत की ओर बढता लगता है। तलवारों पर सर वार दिए, अंगारों पर जिस्म जलाया है, तब जाके कहीं हमने, सिर पर ये केसरी रंग सजाया है जैसी भुजाएं फडकाने और पूरे मन को झुमा देने वाली पंक्तियों से ये गीत शुरू होता है। बाद का हर शब्द, हर पंक्तियां, हर हिस्सा दिलों को झकझोरने वाला, आंख नम करने वाला और झुमा देने वाला है।
इस गीत को जब मै सुनता हूं तो माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा से इसकी तुलना करने का मन होता है। चतुर्वेदी जी ने इस कविता में एक फूल के माध्यम से बेहद गहरी बात कही है। फूल को देवताओं के सिर पर आने की जगह सैनिकों के पांव तले रौंदा जाना पसंद है। कविता की पंक्तियां है-
चाह नहीं मै सुरबाला के गहनों में गूथां जाऊं ।
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊ ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊ ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाउं।
मुझे तोड लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश नवाने, जिस पथ जाए वीर अनेक।
तेरी मिट्टी को इस कविता के साए में देखे तो तेरी मिट्टी उस सैनिक का आत्मगान है जो अपने गांव, मिट्टी से दूर जंग के मैदान में मातृभूमि की आन बान और शान के लिए खुद को झौंक रहा है। एक सैनिक की अभिलाषा के रूप में इसे देख सकते है। फूल और सैनिक दोनों की सीमाएं अलग है, काम जुदा है लेकिन अभिलाषा एक है मातृभमि की वंदना। चतुर्वेदी जी का पुष्प मातृभूमि की रक्षा के लिए जाने वाले वीरों की राह में फेंके जाने की इच्छा प्रगट करता है। वहीं तेरी मिट्टी में सैनिक खुद को मिट्टी में मिलाकर फूल बनकर खिलने की इच्छा व्यक्त करता है। उसकी कामना है कि वह नदियों में बह जाए और खेतों में लहलहाए।
इस गीत की सबसे मारक पंक्तियां है ओ माई मेरी क्या फिक्र तुझे, क्यों आंख से दरिया बहता है। तू कहती थी चांद हूं मेरा ,और चांद हमेशा रहता है। आज ही अखबार में भगत सिंह का अपनी बहन को लिखा खत पढा। जिसमें भगत सिह ने अपनी बहन को लिखा था कि वो हमेशा रहेंगे। बात सच भी है शहीद तो हमेशा के लिए ही होते है जैसे चांद हमेशा रहता है। इस गीत को मनोज मुन्तशिर ने लिखा है। इससे पहले वे रुस्तम का तेरे संग यारा गीत लिखकर चर्चा में आए थे। एमएस धोनी का कौन तुझे जैसा दिल में उतरने वाला गीत भी उन्होंने लिखा है।
बंकिमचंद्र, रविंद्रनाथ, इकबाल इनकी और इनके लिखे गीतों की किसी से तुलना नहीं है लेकिन मनोज मुन्तशिर ने तेरी मिट्टी के माध्यम से मिट्टी से जुडा एक ऐसा गीत लिख दिया जो हर जुबां पर खिला उठा है।
#प्रशांत_शैलके
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बंकिम चंद्र के आनंद मठ का वंदे मातरम जंगे ए आजादी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। सिर्फ इस गीत के कारण लोग शहीद भी हुए। दुर्भाग्य है कि संघर्ष में जिस गीत को हिंदु मुसलमान ने साथ गाया आजादी के बाद कुछ सिरफिरों को इसमें धार्मिक पहलू दिख गया और उस गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा मिला जो अंग्रेज साहब के आगमन पर उनके यशोगान के लिए लिखा गया था।
इन दिनों केसरी के गीत तेरी मिट्टी की जबरदस्त चर्चाएं है। बी प्राक ने इसे जिस तरह से गाया है ये गाना एक नए राष्ट्रगीत की ओर बढता लगता है। तलवारों पर सर वार दिए, अंगारों पर जिस्म जलाया है, तब जाके कहीं हमने, सिर पर ये केसरी रंग सजाया है जैसी भुजाएं फडकाने और पूरे मन को झुमा देने वाली पंक्तियों से ये गीत शुरू होता है। बाद का हर शब्द, हर पंक्तियां, हर हिस्सा दिलों को झकझोरने वाला, आंख नम करने वाला और झुमा देने वाला है।
इस गीत को जब मै सुनता हूं तो माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा से इसकी तुलना करने का मन होता है। चतुर्वेदी जी ने इस कविता में एक फूल के माध्यम से बेहद गहरी बात कही है। फूल को देवताओं के सिर पर आने की जगह सैनिकों के पांव तले रौंदा जाना पसंद है। कविता की पंक्तियां है-
चाह नहीं मै सुरबाला के गहनों में गूथां जाऊं ।
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊ ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊ ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाउं।
मुझे तोड लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश नवाने, जिस पथ जाए वीर अनेक।
तेरी मिट्टी को इस कविता के साए में देखे तो तेरी मिट्टी उस सैनिक का आत्मगान है जो अपने गांव, मिट्टी से दूर जंग के मैदान में मातृभूमि की आन बान और शान के लिए खुद को झौंक रहा है। एक सैनिक की अभिलाषा के रूप में इसे देख सकते है। फूल और सैनिक दोनों की सीमाएं अलग है, काम जुदा है लेकिन अभिलाषा एक है मातृभमि की वंदना। चतुर्वेदी जी का पुष्प मातृभूमि की रक्षा के लिए जाने वाले वीरों की राह में फेंके जाने की इच्छा प्रगट करता है। वहीं तेरी मिट्टी में सैनिक खुद को मिट्टी में मिलाकर फूल बनकर खिलने की इच्छा व्यक्त करता है। उसकी कामना है कि वह नदियों में बह जाए और खेतों में लहलहाए।
इस गीत की सबसे मारक पंक्तियां है ओ माई मेरी क्या फिक्र तुझे, क्यों आंख से दरिया बहता है। तू कहती थी चांद हूं मेरा ,और चांद हमेशा रहता है। आज ही अखबार में भगत सिंह का अपनी बहन को लिखा खत पढा। जिसमें भगत सिह ने अपनी बहन को लिखा था कि वो हमेशा रहेंगे। बात सच भी है शहीद तो हमेशा के लिए ही होते है जैसे चांद हमेशा रहता है। इस गीत को मनोज मुन्तशिर ने लिखा है। इससे पहले वे रुस्तम का तेरे संग यारा गीत लिखकर चर्चा में आए थे। एमएस धोनी का कौन तुझे जैसा दिल में उतरने वाला गीत भी उन्होंने लिखा है।
बंकिमचंद्र, रविंद्रनाथ, इकबाल इनकी और इनके लिखे गीतों की किसी से तुलना नहीं है लेकिन मनोज मुन्तशिर ने तेरी मिट्टी के माध्यम से मिट्टी से जुडा एक ऐसा गीत लिख दिया जो हर जुबां पर खिला उठा है।
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