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मिशन मंगल- सपने, हौसले, जिद, जुनून की गगनभेदी कहानी

लड़ाई तो खुद से है, नतीजे को दुनिया कॉपी करेगी


MOVIE REVIEW प्रशांत शैलके: थियेटर से जब कोई फ़िल्म देखकर निकलते है तो कोई एक बात होती है जो मन और दिमाग मे साथ आती है। दंगल, और सुल्तान ने बताया था कि असली लड़ाई तो खुद से है। पैडमैन ने इस लड़ाई में समाज को भी जोड़ दिया था। मिशन मंगल इससे आगे की बात कहती लगती है, असली लड़ाई तो खुद से है जिसके नतीजों का अनुसरण दुनिया करेगी। अक्षय का संवाद दुनिया से कह दो इसकी कॉपी कर ले, इसी बड़ी बात को छोटे शब्दों में कहता लगता है। Mission Mangal Movie Review

जिस देश मे चांद से रिश्ता हो और ग्रहों की स्थिति जिंदगी में प्रवेश करती हो वहां मंगल जैसे ग्रह पर पहुंचकर हमारे वैज्ञानिकों ने दुनियां को हैरत में डाल दिया था। बेहद कम संसाधनों में छह करोड़ किलोमीटर दूर के गृह मंगल की कक्षा में सेटेलाइट भेजने की इस हैरत अंगेज कहानी को मिशन मंगल में उतनी ही गरिमा, उतनी ही जिम्मेदारी से प्रस्तुत किया गया है। ये कहानी सिर्फ एक सफल अभियान की नहीं है बल्कि कहानी है सपनों को पूरा करने की, हौसलों को उड़ान देने की, जिद को पूरा करने की और जुनून के पंखों से गगन को भेद देने की।
ये फ़िल्म औरत की ताकत का यशोगान भी है। फ़िल्म की शुरुआत ही घरेलू कठिनाईयों से जूझती औरत से होती है और अंत अपने छोटे से घर की चाहत को पूरा होने की उम्मीद करती महिला से है। महिलाओं के परेशानियां अंतरिक्ष से बड़ी है। उन्ही परेशानियों के बीच उन्होंने अंतरिक्ष को भेद दिया। फ़िल्म के अंत मे रैंप पर कैट वाक की तरह तालियां बजाते लोगों के बीच से गुजरती महिलाओं का दृश्य खुद को ताली बजाने के लिए प्रेरित करता है । Mission Mangal Movie Review

गाय, खेत, खलिहान, सांप, मेले,ठेले और हर कहीं जुगाड़ लगाते लोगों वाला देश जुगाड़ से मंगल तक पहुंच सकता है किसी की कल्पना में नहीं रहा होगा। विश्व ने जब भारत को क्रोयोजनिक तकनीक देने से मना किया था और भारत ने जब इस तकनीक को खुद विकसित कर लिया था तब स्थानीय लाइब्रेरी में कुछ लोगों के बीच इस तकनीक को बताने का मुंझे मौका मिला था। पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल और इसमें क्रोयोजनीक तकनीक के इस्तेमाल को बताते समय ये आभास नहीं था कि ये देश को एक दिन मंगल पर पहुंचा देगा।



इसरो के 15 हजार वैज्ञानिकों की इस महान सफलता को दमदार एक्टर्स और जोरदार संवादों ने हिट कर दिया है। फ़िल्म अक्षय की है लेकिन विद्या बालन इस फ़िल्म की जान है। डर्टी पिक्चर की सिल्क, बेगम जान की बेगम बॉबी जासूस की बॉबी और तुम्हारी सुलु की सुलु किरदार जैसे विद्या के बिना अधूरे है वैसे ही वैज्ञानिक तारा के किरदार को विद्या ने सांसे दी है। बेटा जब पूछता है कि वैज्ञानिक होकर माँ का ईश्वर पर इतना भरोसा क्यों है। इसके जवाब में तस्वीर और लिरिक्स बदलने से पावर नहीं बदलता। विज्ञान से परे के पावर को समझाती विद्या की बॉडी लैंग्वेज, उनके चेहरे, उनके भाव को देखें तो लगता है ऐसे एक्टर गढ़े नहीं जा सकते, ये तो जन्मते है। दिलीप ताहिल, तापसी पन्नू, कृति कुल्हारी, नित्या मेनन, सोनाक्षी सिन्हा, शरमन जोशी ने अच्छा काम किया है। संजय कपूर ने लंबे अंतराल के बाद प्रभावी वापसी की है। इस फ़िल्म के कुछ संवाद दमदार है

। किसी से प्रेरित होना चाहिए, सीखना चाहिए लेकिन अपना रास्ता खुद बनाना चाहिये, और हर एक्सपेरिमेंट पहले एक जोक होता है गहरी बातें कहते है। प्ले द गेम एंड वी वन ऐसा ही संवाद है। अक्षय कुमार को फ़िल्म की शुरुआत में गाने गुनगुनाते दिखाया गया है। इसका और प्रयोग कर कहानी के प्रस्तुतिकरण को धार दी जा सकती थी जैसे अमिताभ और ऋषि की 100 नॉट आउट में किया गया था। Mission Mangal Movie Review

फ़िल्म में दो गाने है। शाबासियां को अमित त्रिवेदी ने शानदार कंपोज किया है। सीक्रेट सुपरस्टार और उड़ता पंजाब के इक कुड़ी जिदा नाम जैसी स्तरिय प्रस्तुति वे दे चुके है। अमिताभ भट्टाचार्य ने शाबासियां शानदार गीत लिखा है। इस गीत की पंक्तियां है
सच होने की खातिर जो,
सपने कीमत मांगेंगे,
जाग के रातें कीमत भर देना।
जब नजदीक से देखें तो,
खुशियों के आंसू आये,
तू नजरों को वो मंजर देना।

बहुत खूबसूरती से लिखा गया है। दिलीप ताहिल से अक्षय का संवाद है सफलता तब ही मिलती है जब चैलेंज बड़ा हो। सच भी है बिना चुनौतियों के ऐसे इतिहास रचे भी नहीं जा सकते।
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