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जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं

जो तुम चाहते हो बस वही मान लेते हैं

झूठ को सच,सच को झूठ जान लेते हैं


अब तक अक्सों में ढूँढते रहे इक दूजे को

चलो आज हम खुद को पहचान लेते हैं


तिनका तिनका जोड़ के आशिया बनाएँ

थोड़ा सा ज़मीन,थोड़ा आसमान लेते हैं


माँगों में सजे तुम्हारे भरी भरी हरियाली

अहसासों में गीता और कुरआन लेते हैं


खुशी की लहरें दौड़ा करें हमारे आँगन में

क्षितिज के आसपास कोई मकान लेते हैं


                                    - सलिल सरोज


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