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मेरी ग़ुरबत की क़ीमत क्या लगाते



मेरी ग़ुरबत की क़ीमत क्या लगाते
जो ख़ुद डूबे थे क्या मुझको डुबाते


मोहब्बत में वफ़ा की उम्र कितनी
तअल्लुक़ को कहाँ तक आज़माते


पुराने ज़ख्म सूखे बीते बरसों
नया तुम ज़ख्म देते जाते जाते


वहाँ से आगे है रस्ता न मंज़िल
जहां तक आ गया हूँ आते आते


इन्ही से हैं मेरे अशआर ताज़ा
हुई मुद्दत क़लम से ख़ूँ बहाते





            - बलजीत सिंह बेनाम


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