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खोखली भीड से उपजे अकेलेपन का उपचार है फिल्म ड्रीम गर्ल


प्रशांत शेलके फिल्म समीक्षाड्रीम गर्ल इस शब्द ने बीते दशकों में पता नहीं कितनों को उमंगे दी है। कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी आज नही तो कल। आखिर क्या है वो जो हर इंसान पाना चाहता है। उसका सपना क्या है। वैसे भी सपने अपने होते है। सपने कोई भेदभाव नहीं करते। एक सपना जिंदगी बदल सकता है। सपना ही है जो जीवन जीने का तरीका सिखा सकता है। और सपना ही दूसरे से आगे और दूसरों से अलग बना सकता है। इस सपने को किसी काम से , किसी लक्ष्य से, किसी उपलब्धि से जोड लो तो वह ड्रीम प्रोजेक्ट बन जाता है। किसी लडकी से जोड लो तो फिर ड्रीम गर्ल। लेकिन आज के समय में ड्रीम गर्ल के मायने कुछ अलग है। Dream Girl Movie Ayushman Khurana





जब गिनती में हम बढते जा रहे। दुनिया में मनुष्यों का समुद्र हो गया है। आभासीय दुनिया में हमारे हजारो दोस्त है। इसके बाद भी इस भीड में व्यक्ति खुद को अकेला पता है। इस दुनिया में अकेलापन बढ रहा है। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए एक साधन चाहिए। ऐसा साधन जो भावनाओं, व्यक्तित्व, मन से मेल खाता हो। और ऐसा जब कोई आता है तो फिर उसका अच्छा और बुरा भी सब अपना हो जाता है।





आज की दौडभाग की जिंदगी सेे उबरे इसी खालीपन को दूर करने संदेश देती फिल्म है ड्रीम गर्ल। 
इस फिल्म का एक संवाद भी है इस दुनिया में लोग कितने अकेले है और कुछ तो बहुत ही अकेले है। काल सेंटर गर्ल इस अकेलेपन का उपचार बन जाती है। अंत में संवाद है हर किसी में अपनी पूजा खोजिए। जिससे आप अपने दिल की बात कर सके। वो घर में चाचा, चाची, ताउ कोई भी हो सकता है। ड्रीम गर्ल को देखकर थियेटर से निकलते दर्शकों की प्रसन्नता इसे किसकी फिल्म बनाती है। आयुष्मान की, अन्नू कपूर की, निर्देशक की या संवाद लेखक की। दरअसल ये फिल्म किसी एक की सफलता नहीं है। इस फिल्म की जान इसके संवाद है, कलाकारों ने इसे धार दी है, और निर्देशक ने अपनी बात को बेहद मारक अंदाज में कहा है।





इस फिल्म में कुछ जगह इसके निर्देशक का जीनियस दिखता है। बुढापे में प्यार के रंग में डूबा व्यक्ति घर का रंग से लेकर बालों तक का रंग बदल देता है। एक हिंदु का घर रंग बदलने से मुसलमान का हो जाता है। इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं इस एक वाक्य को निर्देशक ने बखूबी दिखाया है। बुनियादी सीख की जगह हमने रंगों को धर्म का रूप दे दिया। फिल्म के अंत में मंच के ग्लैमर के बीच हीरो जब सच बताता है तो बिजली चली जाती है। इससे क्या ये महसूस नहीं होता कि हम रौशनी में आडंबर से भरे है और अंधेरा हमे अनावृत कर देता है। हम जो है वो उजाले में नहीं है। यदि हम अंधेरे और उजाले में एक जैसे रहे तो फिर चंपई अंधेरा सुरमई उजाला बन जाता है। #DreamGirlMovie #AyushmanKhurana





इस फिल्म का एक और बेहतर संवाद है , हर इंसान गलत है लेकिन जो कम गलत है वो सही है। पूरी फिल्म की कहानी काल सेंटर के इर्द गिर्द बुनी गई है। एक मर्द अपनी खूबी से काल सेंटर में महिला का जाब पा जाता है। इसको हम दूसरे अर्थ में देखे तो लगता है कि  काम इंसान को मजबूर बनाता है । इस काल सेंटर में पुरुषो से बातें करती महिला कोई स्वेटर बुन रही है तो कोई पढ रही है। अर्थ गहरा है कि इन महिलाओं को इनके काम से मत आंकिए। कुछ सालों पहले दिल्ली में रहने वाली मेरी दोस्त ने अपने संघर्ष के दिनों में इसी तरह के काल सेंटर पर काम किया था। जो उसने बताया था वही निर्देशक ने इस फिल्म में उडेल दिया।





जुडवा हास्य भूमिकाओं पर अंगूर इस विद्या का महाकाव्य है। चाची 420 को यदि भगवत गीता कहे तो ड्रीम गर्ल उसके आगे का ही एक कदम है। चाची 420 में चाची अपने तमाम रहस्यों के साथ नदी में समा गई थी। लेकिन ड्रीम गर्ल ऐसा नहीं करती। तमाम रहस्य समाज के खोखलेपन और लंपटता के बीच उजागर होते है।





आयुष्मान जितनी सहजता से कोई भूमिका करते है वह उन्हें जीनियस बनाता है। अन्नू कपूर ने अपने अभिनय से बताया कि वह कितने मंजे हुए कलाकार है। कौआ बिरयानी वाले विजय राज जिस रोल में होते है उसमें जान डाल देते है। नुसरत भरुचा और मंजोत सिंह ने भी बेहतर काम किया है।





इस फिल्म का निर्देशन राज सांडिल्य ने किया है। कामेडी सरकस के वे लीड राईटर और कंटेट डाईरेक्टर रहे है। उनका अनुभव और उनकी महारथ फिल्म के हर फ्रेम और हर दृश्य पर दिखाई देती है। कामेडी सरकस जैसे शो में पंच महत्वपूर्ण होते है। इस फिल्म में भी पंच जबरदस्त है। जब आशिक को पता लगता है कि उसकी माशूका हिंदु नहीं मुसलमान है तब इस फिल्म का सबसे जबरदस्त पंच है, पूजा अजान हो गई। एक और पंच है जिसमें बालो का रंग बदलकर जगदीश , मेहंदी हसन बन जाता है। मतलब गहराई में गए बिना सिर्फ थोड़े से बदलाव से सतही लक्ष्य पाए जा सकते है। ऐसे ही प्रयास, इसी खोखलेपन, इसी तरह की लंपटता का उपचार बताती है फिल्म ड्रीम गर्ल।





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