आपकी हँसी बिन सके, आपकी ख़ुशी बिन सके
आपकी हँसी बिन सके ,आपकी ख़ुशी बिन सके
बे-तनख़्वाह बस इसी काम पर रख लीजिए हमें
आपको सँवारने में हम भी कुछ तो सँवर जाएँगे
मत सोचिए, किसी भी दाम पर रख लीजिए हमें
जल कर भी आपकी शफ़क़त* को रोशन रखेंगे
अपने घर में लौ के नाम पर ही रख लीजिए हमें
कोई भी कमी तो नहीं आपके हुश्न में या खुदाया
होंठों के छलकते जाम पर ही रख लीजिए हमें
निगाहें उठे तो दशहरा, निगाहें झुके तो दिवाली
निगाहों के ऐसे सुबह -शाम पर रख लीजिए हमें
तुमने अभी हठधर्मिता देखी ही कहाँ है
तुमने अभी हठधर्मिता देखी ही कहाँ है
अंतर्मन को शून्य करने का व्याकरण मुझे भी आता है
अल्पविराम,अर्धविराम,पूर्णविराम की राजनीति मैं भी जानती हूँ
यूँ भावनाशून्य आँकलन के सिक्के अब और नहीं चलेंगे
स्त्रियों का बाजारवाद अब समझदार हो चुका है
खुदरे बाजार से लेकर शेयर मार्किट तक में इनको अपनी कीमत पता है
तुम्हारी इच्छाओं का बहिष्कार कोई पाप नहीं
सीता,सावित्री,दमयंती का अब कोई शाप नहीं
हमें काठ का बना के रखोगे तो जलती हुई राख ही मिलेगी
प्रताड़नाओं, पीड़ाओं से झुलसी अहसासों की साख मिलेगी
वक़्त को पिघलकर हम हथियार बना ले
इससे पहले अपनी पुरूषप्रधानता की जाँच कराओ
और हमें बराबर होने का सही अहसास दिलाओ