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कुछ करना चाहता हूँ, पर कुछ कर नही पाता हूँ।


कुछ करना चाहता हूँ, पर कुछ कर नही पाता हूँ।
आगे बढ़ना चाहता हूँ, पर आगे बढ़ नही पाता हूँ।
कोई मदद करना चाहे,तो मदद ले नही पाता हूँ।
किसी से मदद मांगना चाहता हूँ, पर शरमा जाता हूँ।
अच्छे जगहों पर घूमना चाहता हूँ,पर जेब खाली पाता हूँ।
बड़े लोगो को देखता हूँ,तो अपने नसीब को कोषता हूँ।
अच्छा-अच्छा भोजन चाहता हूँ, पर कभी-कभी भूखे पेट ही सो जाता हूँ।
बड़े-बड़े अमीरों को देखकर, मैं भी अमीर कहलाना चाहता हूँ।
पर अपने आर्थिक परेशानियों के कारण, मैं सिर्फ गरीब कहलाता हूँ।





सौरभ कुमार ठाकुर (बालकवि एवं लेखक)
मुजफ्फरपुर, बिहार





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