गर्भावस्था में शिशु पर ग्रहों का असर
जीवन के रहस्य को समझने के लिए सभी अपने अपने स्तर पर प्रयास करते हैं जहां विज्ञान शरीर के संबंध में खोज करता है वही आध्यात्म आत्मा के संबंध में। जीवन के जन्म से लेकर अब तक चले आ रहे सभी प्रकार के प्रयासों में हम ज्योतिष को नहीं झुठला सकते। ज्योतिष में विश्वास रखने वालों के लिए यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है कि मनुष्य के शरीर के जन्म में किस ग्रह की क्या भूमिका होती है गर्भावस्था के कौन से महीने में कौन सा ग्रह प्रभावशाली होता है और जन्म के समय किन ग्रहों की स्थिति एक सुखद प्रसव के लिए आवश्यक है।
ग्रहस्तु व्यापितं सर्व जगदेत्चराचरम।। यह चराचर जगत् ग्रहों से ही व्याप्त है। ग्रहों का असर मानव शरीर की उत्पत्ति में किस प्रकार कार्य करता है आईये इसी विषय पर जानने का प्रयत्न करें।
जैसा कि हमजानतें है किमानव की उत्पत्तिमाँ के गर्भमें करीब नौमहीनों व कुछदिनों की यात्राके उपरान्त होतीहै और इसजीव उत्पत्ति कीयात्रा में सातोंग्रहों की भूमिकापूर्ण रूप सेहोती है। राहू-केतु छायाग्रहों को छोड़कर।
शुक्र ग्रह
गर्भधारण के प्रथममहीने पर आधिपत्यशुक्र ग्रह काहोता है। उसमहीने गर्भ मेंवीर्य में स्थितशुक्राणु, स्त्री के डिंबाणमें अवस्थित रजसे मिलकर अण्डेका रूप लेताहै। ज्योतिष मेंवीर्य का नैसर्गिककारक शुक्र ग्रहहोता है।
मंगल ग्रह
इसी प्रकार द्वितीय महीनेपर मंगल ग्रहका आधिपत्य होताहै। मंगल एकअग्नि तत्व ग्रहहै जिसका कार्यअण्डे को माँसके पिण्ड मेंपरिवर्तित करना होताहै। अग्नि तत्वके कारण माताके शरीर मेंपित्त प्रकृत्ति स्वभाविकरूप से बढतीहै और गर्भस्थमहिलाओं को उल्टी,चक्कर व बेचैनीके लक्षण परिलक्षितहोने लगते है।
बृहस्पति ग्रह
इसी क्रम मेंबृहस्पति ग्रह तृतीयमहीने पर अपनाआधिपत्य ग्रहण करता हैजिसके फलस्वरूप वहमांस का लोथडापुरुष और स्त्रीलिंग के जीवके रूप मेंपरिवर्तित होता है।चूंकी बृहस्पति ग्रहजल तत्व ग्रहहै इसके परिणामस्वरूप पित्त में कमीआती है औरद्वितिय माह केलक्षण समाप्त होएक अन्दरूनी खुशीका एहसास होताहै और गर्भस्थमहिला गर्भ कोपूर्ण रूप सेअनुभव करने लगतीहै।
सूर्य ग्रह
माँस के पिण्डको आकार औरआधार प्रदान करनेके लिए हड्डियोंका नैसर्गिक कारकसूर्य का आधिपत्यचतुर्थ मास मेंलक्षित होता है।उस माँस रूपीपिण्ड (जीव) केअन्दर हड्डियाँ बनजाती है औरशरीर लगभग पूर्णताकी ओर अग्रसरहोने लगता है।
चन्द्रमा ग्रह
पंचम माह परचन्द्रमा का आधिपत्यहोता है औरजैसा कि ज्योतिषमें चन्द्रमा तरलपदार्थ, जल, रक्तप्रवाह इत्यादि का नैसर्गिककारक होता है।इस माह मेंशरीर नसों, नाडियोंव माँसपेशियों सेपरिपूर्ण हो जाताहै।
शनि ग्रह
ग्रहों की इसव्यवस्था के क्रममें छठे महीनेंशनि का पूर्णआधिपत्य गर्भस्थ शिशु परहोता है। शनिअपने नैसर्गिक कार्यकत्वके अनुरूप शिशुके शरीर मेंबाल उत्पन्न करताहै साथ हीशिशु के शरीरका रंग गोरे,काले व साँवलेका निर्धारण इसीमाह शनि केद्वारा होता है।
बुध ग्रह
सातवें महीनें गर्भस्थ शिशुपर बुध ग्रहका पूर्ण प्रभावदृष्टिगोचर होता है।बुध बुद्धि कासामान्य कारक हैऔर गर्भ मेंपल रहे शिशुको बुद्धि उपलब्धकरवाता है औरगर्भस्थ शिशु परमाता के आचारविचार का प्रभावपडना शुरू होजाता है। अतःइन दिनों केबाद से माताकी सोच, चिन्ताव आचरण आनेवाले शिशु कीबुद्धि का निर्माणकरतें है। जैसाकि हम जानतेहै महाभारत कालमें अभिमन्यु नेगर्भ में हीचक्रव्यूह तोडना सीख लियाथा।
लग्नेश
आंठवें महीने का आधिपत्यगर्भस्थ की माँका लग्नेश होताहै इस वजहसे माँ कास्वास्थ्य का प्रभावगर्भस्थ शिशु परपूर्ण रूप सेपडता है। आठवेंमहीने में बहुतसावधानी बरतने की जरूरतहोती है। यदिआठवें महीनें मेंमाँ का लग्नेशपीडित हो जायेतो गर्भपात कीसंभावना बढ जातीहै और शिशुकी मृत्यु तकहो सकती है।इसी वजह सेसांतवें महीने का शिशुजन्म लेने परबच सकता हैपरन्तु आठवें महीनें काशिशु यदि जन्मले तो बचनेकी संभावना कमहोती है।
चन्द्रमा
नौवें महीनें का अधिपतीहोने का भारफिर से चन्द्रमाउठाता है औरअपनी प्रकृत्ति केअनुसार गर्भ केअन्दर पेट मेंइतना पानी उत्पन्नकरता है किशिशु जिसमें तैरसके और आरामसे जन्म लेसकने मे समर्थहो जाए।
नौ महीने के बादगर्भ पर सूर्यका आधिपत्य होताहै तथा सूर्यअपनें स्वाभाविक अग्नितत्व प्रभाव सेपेट में गर्मीपैदा कर शिशुको माता केशरीर से अलगकर देता है।वह जिन माँसपेशियोंसे जकडा होताहै, उनसे छूटजाता है औरइस मृत्युलोक मेंजन्म प्राप्त करताहै।
इस प्रकार मानव नौमहीनें में ग्रहोंके असर कोलेकर देह धारणकरता है। जन्मके वक्त आसमानके ग्रहों कीस्थिति अर्थात अपनी जन्मकुण्डलीके अनुसार इनग्रहों के द्वाराबनाये जीवन पथपर अपने विवेकव कर्म द्वारासुख व तकलीफहासिल करता हुआअग्रसर होता है।