टमाटर की खेती से कृषक श्री संजय चौधरी हुए मालामाल "खुशियों की दास्तां"
मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ के नेतृत्व में प्रदेश सरकार किसानों और नौजवानों की प्रगति के लिये निरंतर प्रसायरत है। राज्य सरकार के इन प्रयासों से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में नया परिदृश्य दिखाई दे रहा है। उद्यानिकी क्षेत्र में किसानों और नौजवानों को प्राथमिकता देते हुए उनके लिये आर्थिक मदद के रास्ते भी खोल दिये गये हैं। यह क्षेत्र किसानों और नौजवानों के लिये अतिरिक्त आय का सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। अब प्रदेश का किसान खेती के साथ उद्यानिकी का कारोबार भी अपनाने लगा है। बेरोजगार नौजवान भी इस क्षेत्र में आधुनिक तकनीकी को अपनाकर स्वावलम्बी बन रहे हैं। छिंदवाडा जिले के पांढुर्णा विकासखंड के ग्राम सिवनी के कृषक श्री संजय पिता चिरकुट चौधरी इन्हीं उदाहरणों में से एक है जो उद्यानिकी के माध्यम से स्वावलंबी बन गये हैं और परंपरागत खेती के साथ-साथ उद्यानिकी फसल से अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं।

कृषक श्री संजय चौधरी ने कक्षा 12वीं तक पढ़ाई की है। प्रारंभ में वे परंपरागत खेती करते थे, लेकिन इससे उन्हें अधिक आमदनी प्राप्त नहीं हो पाती थी और समस्याएं भी अधिक आती थी। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के संपर्क में आने पर उन्हें विभाग के अधिकारियों से समय-समय पर मार्गदर्शन मिलना शुरू हुआ और उन्होंने अपनी सोच को बदला तथा खेती के नये तरीकों को अपनाया। इसमें सिंचाई के लिये ड्रिप सिंचाई प्रणाली मुख्य है जिससे उन्हें आशा से अधिक लाभ मिला है। उन्होंने ड्रिप सिंचाई योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन पंजीयन कराया और 50 प्रतिशत अनुदान पर ड्रिप सिस्टम मिलने पर 3 एकड़ में टमाटर की फसल लगाकर इसमें ड्रिप लगाई। पहले वर्ष उन्हें 3.80 लाख रूपये की लागत निकालकर 10 लाख रूपये और दूसरे वर्ष 4.50 लाख रूपये की लागत निकालकर 12 लाख रुपये की शुध्द आय प्राप्त हुई। इसी प्रकार खरीफ सीजन में उन्होंने 3 एकड़ में फूलगोभी की फसल लगाकर इससे 3 लाख रूपये की शुध्द आय भी प्राप्त की।
इस प्रकार टमाटर और फूलगोभी की फसल से वे प्रतिवर्ष लागत निकालकर 15 लाख रुपए की शुध्द आय प्राप्त कर रहे है। अपने उत्पाद का अधिक दाम प्राप्त करने के लिए उन्होंने नये-नये बाजार की तलाश की और स्थानीय बाजार के साथ ही नागपुर, बिलासपुर व जबलपुर तक अपने उत्पाद का परिवहन कर अधिक दर पर उत्पाद का विक्रय कर आय प्राप्त कर रहे है। इससे उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है और वे आत्म निर्भर हो गये है। साथ ही अन्य कृषकों को भी खेती की नई तकनीकों को अपनाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं।