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16वीं सदी में बनी बावली से होगा संरक्षण, लोगों को मिलेगा रोजगार

Publish Date: | Mon, 08 Jun 2020 04:07 AM (IST)

– जिला पंचायत एक करोड़ से 21 बावलियों का करा रही जीर्णोद्धार

नोट बावली नाम से फोटो अटैच की है

फोटो 3 श्मशान घाट वाली बावली।

फोटो 4 देवगढ़ स्थित पटेल बावली।

आशीष मिश्रा, छिंदवाड़ा।

16वीं सदी के दौर में गोंडवाना शासकों ने क्षेत्र में कई बावलियों का निर्माण कराया था। लोगों की जल आपूर्ति के लिए बनाई गई ये बावलियां अब दो प्रकार से लोगों की मदद करेंगी। इनको को जल संरक्षण कर आपूर्ति की जाएगी। इसके साथ ही कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन को लेकर उपजी परिस्थिति में मजदूरों को रोजगार भी मिलगा। जिला पंचायत ने क्षेत्र की 21 बावलियों को चिन्हित किया है। एक करोड़ की लागत से इनका कायाकल्प किया जा रहा है।

जिले से लगभग 40 किलोमीटर दूर मोहखेड़ विकासखंड के देवगढ़ गांव में सुरम्य पहाड़ियों में देवगढ़ का किला स्थित है। मध्य भारत में गोंडवाना साम्राज्य के वैभव और समृद्धि से जुड़ा इसका इतिहास आज भी अपनी गौरवशाली विरासत को बयां करता है। यहां तत्कालीन परिस्थिति अनुसार जल संरक्षण की अनेक संरचनाएं देखने को मिलती है, लेकिन समय के साथ ये जल संरचनाएं जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी गजेंद्र सिंह नागेश ने बताया कि एकीकृत जल ग्रहण प्रबंधन मिशन और मनरेगा के अंतर्गत इन जल संरचनाओं का जीर्णोध्दार कर उन्हें मूल स्वरूप में ही नया रूप प्रदान करने की कार्ययोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

900 बावली और 800 कुएं बनवाए

देवगढ़ की ऐतिहासिक बावलियों के जीर्णोद्धार के साथ ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने और जल संरक्षण का कार्य हो सकेगा। देवगढ़ सरपंच केशव भागरे ने बताया कि देवगढ़ का किला व उसके आसपास 900 बावली और 800 कुएं हैं। जिन्हें तत्कालीन शासकों ने बनवाया था। अभी तक 46 बावलियों और 12 कुओं की खोज की जा चुकी है। निर्धारित कार्ययोजना में मनरेगा के अंतर्गत प्रथम चरण में 29.18 लाख रुपये की लागत से 7 बावलियों का जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है, दूसरे चरण में 79.35 लाख रुपये की लागत से 14 बावलियों का जीर्णोद्धार कार्य किया जाएगा।

दो पाली में काम कर रहे मजदूर

देवगढ़ ग्राम पंचायत में विजयगढ़ गांव भी शामिल हैं, यहां करीब 300 श्रमिकों को काम मिल रहा है, जिसमें से 50 मजदूर बाहर से आए हैं। ये मजदूर दो पाली में काम करते हैं, सुबह 7 से 12 और दूसरी पाली में 3 से 5 बजे तक काम होता है। जिसमें मुख्य रूप से काम बावली के रंग रोगन और गहरीकरण जैसे काम शामिल है। बावली के मूल रूप में कोई अंतर न आए इसे लेकर प्रयास किए जा रहे हैं।

Posted By: Nai Dunia News Network

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