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निर्देशक और अभिनेता की तरह दर्शक भी है रंगकर्मी

छिंदवाड़ा। नाटयगंगा छिंदवाड़ा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन एक्टिंग की पाठशाला के पंद्रहवें दिन भोपाल से गिरिजा शंकर विद्वान वक्ता के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने बताया कि हर बात के दो पहलू होते हैं एक अच्छा और एक बुरा। जब हम एक कलाकार होते हैं तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हमें हमारे दोनो पहलुओं के बारे में बहुत ही सटीक जानकारी हो।

एक आम इंसान होने के दायित्व से आगे बढ़ जाता है एक रंगकर्मी, क्योंकि उसके समाज के प्रति भी दायित्व बढ़ जाते हैं। एक दर्शक से संवाद साधने से लेकर उस संवाद में निरंतरता बनाए रखने के कितने तरीके हैं, कैसे एक आम इंसान के बीच रंग अलख जगाया जाए, कैसे हम इतने निपुण हों कि लोग हमसे जुड़ते ही नही बल्कि हमारे साथ सभी को जोड़ते चले जाएं।

गिरिजा शंकर ने अपने अमूल्य अनुभवों के आधार पर सभी कलाकारों का मार्गदर्शन किया। रंगमंच की स्थिति, कलाकारों की स्थिति सब के बारे में विस्तार से बात की। वर्तमान समय में दर्शकों को रंगमंच से जोड़ने के लिए क्या किया जाए, इस विषय में सर ने बहुत ही बारीकी से समझाया। रंगमंच में लेखक, निर्देशक और अभिनेता के साथ ही दर्शक भी महत्वपूर्ण होता है जो नाटक की स्क्रिप्ट के चयन से लेकर मंचन तक महत्वपूर्ण होता है।

पहली बार कलाकारों ने नाटक को एक दर्शक, एक समीक्षक की नजरों से देखा, जिससे उनका नाटकों के प्रति नजरिया जरूरी बदलेगा। अतिथि के रूप में राजीव वर्मा, रीता वर्मा, ओम पारीक, संजय तेनगुरिया, भारतेंदु कश्यप, ब्रजेश अनय और विनोद विश्वकर्मा उपस्थित रहे। कार्यशाला के निर्देशक पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में वसंत काशीकर, जयंत देशमुख, गिरिजा शंकर और आनंद मिश्रा हैं।

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