इस लालच के कारण ही मनुष्य शत्रु के साथ करता है ऐसा बर्ताव, वरना ये सोच भी रहती है कोसों दूर

आचार्य चाणक्य ने जीवन को जीने की कुछ नीतियां बनाई हैं। कई दशक बीत गए लेकिन चाणक्य की ये नीतियां आजकल के जमाने में भी सुखमय जीवन की कुंजी हैं। इन नीतियों और विचारों को जिस किसी ने भी अपने जीवन में उतारा वो आनंदमय जीवन जी रहा है। उसके उटल चलने वाले लोगों का जीवन कष्टों से भरा हुआ है। आज हम आचार्य चाणक्य के इन सुविचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार शत्रु की मित्रता पर है।
“किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।” ~ आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने अपने इस कथन में कहा है कि किसी विशेष अवसर पर ही शत्रु किसी का मित्र बनता है। यानि कि अगर कोई किसी का कटु शत्रु हो और आप उसे अपने शत्रु के साथ हंसते बोलते देख लें तो समझ जाएं कि मामला गड़बड़ है। ये सब इसलिए होता है क्योंकि किसी भी कीमत पर अपना काम निकालना मनुष्य की प्रवृत्ति में शामिल है। फिर चाहे वो काम उसका उसके शत्रु से निकल रहा हो या फिर दोस्त से, जरूरत पड़ने पर उसे सब कुछ ठीक लगता है।
कई बार आपने देखा होगा कि मनुष्य जीवन में किसी से नफरत करता है तो उसकी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करता। उसका नाम लेने, सुनने या फिर बोलने हर किसी चीज से व्यक्ति को तकलीफ होती है। यहां तक कि अगर वो पार्टी में आ जाए जहां पर आप हैं तो सभी के साथ ग्रुप फोटो खिंचवाने पर भी अपने बगल में अपने शत्रु को देखकर अंदर ही अंदर जलभुन जाते हैं। अगर ऐसा कटु शत्रु उस व्यक्ति का दोस्त बन जाएं तो इसका सीधा संकेत है कि दाल में कुछ काला है।
ऐसा तभी कोई व्यक्ति करेगा जब इसके पीछे उसका कोई बड़ा स्वार्थ हो। इसलिए अगर आप सुखमय जीवन जीना चाहते हैं तो किसी से शत्रुता न ही करें तो बेहतर है। ऐसा करके आपका मन हमेशा शांत रहेगा।