काजू की खेती का प्रयोग सफल, पौधों को संभालने में लगा किसान
Publish Date: | Fri, 19 Jun 2020 04:08 AM (IST)
पिछले वर्ष दो विकासखंड़ों के तीस हेक्टेयर में रोपे गए थे 6 हजार पौधे,इस वर्ष भी विभाग को मिलेगा काजू के पौधे लगाने का लक्ष्य, विशेषज्ञ जता चुके हैं संभावनाएं
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छिंदवाड़ा। जिले के तामिया और जुन्नााारदेव विकासखंड में उद्यानिकी विभाग ने काजू के पौधे रोपे हैं जिसका प्रयोग अब तक जिले में सफल रहा है। पिछले वर्ष चि-ति किसानों को पूना से काजू के पौधे उपलब्ध कराए गए थे, किसान भी पौधे लगाने में रुचि दिखा रहे हैं। उद्यानिकी विभाग लगातार इस काजू की खेती पर नजर लगाए हुए हैं अब तक के सफल प्रयोग के बाद जल्द ही जिले को काजू की खेती का अगला लक्ष्य मिलेगा। विभाग ने पिछले छह हजार पौधे तामिया व जुन्नाारदेव विकासखंडों के तीस हेक्टेयर लगभग 75 एकड़ में रोपे हैं। उद्यानिकी विभाग के पास पिछले वर्ष 32 किसानों ने पंजीयन कराया है। दोनों विकासखंडों में कुल 15-15 हेक्टेयर की भूमि चि-ति की गई है जिसमें एक हेक्टेयर में 200 पौधे लगाए गए थे। काजू की खेती के अब तक के सफल प्रयोग से उद्यानिकी विभाग भी रुचि दिखा रहा है। सफल प्रयोग के बाद विभाग को यह भी देखना है कि 4 से 5 वर्ष में जब यह पौधे फल देने लायक हो जाएंगे तो उस फल की गुणवत्ता किसानों को कितना लाभ पहुंचाती है।
– संभावनाएं तलाश चुके हैं विज्ञानी
पिछले वर्ष काजू-कोको विकास निदेशालय के विशेषज्ञयों और विज्ञानी ने जिले के सभी विकासखंडों का निरीक्षण किया था। काजू खेती के लिए जिले के कई विकासखंड उपयुक्त पाए थे। उनका मानना था कि काजू की खेती के लिए हल्की जमीन चाहिए। दोमट, रेतीली और मुरम जैसी जमीन पर काजू के पौधे जल्दी पनपते हैं। हल्की और पथरीली जमीन पर इसके बगीचे तैयार किए जा सकते हैं। काजू के लिए गर्मी में मौसम सामान्य चाहिए। इस हिसाब से तामिया और जुन्नााारदेव के कुछ क्षेत्र इसके लिए अनुकूल हैं। यदि यहां प्रयोग सफल रहा तो हर्रई, मोहखेड़, अमरवाड़ा में भी काजू की खेती की जाएगी।
– भिलमा प्रजाति का होता है काजू
जिले में भिलमा की बहुतायत प्रजाति होती है जिसके फल का उपयोग औषधि, स्याही व अन्य कार्यों में होता है। उद्यानिकी विभाग की माने तो काजू का जो फल होता है वह भी भिलमा प्रजाति का ही फल होता है जब भिलमा जिले में बहुतायत है तो काजू का प्रयोग विभाग कर रहा है उसका सफल होना निश्चित ही है। जिस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता भिलमा को होती है उसमें काजू का पौधा भी पनपता है।
– जिले के किसान लगाते रहे है काजू
उद्यानिकी विभाग जलवायु के उपयुक्त होने व विज्ञानी के निरीक्षण के बाद काजू की खेती करवा रहा है लेकिन जिले के कई किसान पहले से काजू के पौधे अपने खेतों में लगाते रहे है कई खेतों में तो काजू के पेड़ अब फल देने योग्य हो गए हैं। मोहखेड़ के किसान द्वारका प्रसाद मालवीय ने तो कई वर्षों पहले पूना से काजू के पौधे खरीदकर लाए थे तथा खेत में लगाए थे जो अब फल देने योग्य हो गए हैं।
– इनका कहना है।
अब तक की स्थिति में जिले में काजू की खेती का प्रयोग सफल रहा है। आने वाले दिनों में विभाग को काजू की खेती का लक्ष्य मिलेगा। एक वर्ष में काजू के पौधे को अच्छा परिणाम मिल रहा है, चार से पांच वर्षों में यह पौधे पेड़ बन जाएंगे तथा फल लगने लगेंगे। किसानों में भी काजू की खेती को लेकर उत्साह देखने में मिल रहा है।
एमएल उईके, उपसंचालक, उद्यानिकी विभाग, छिंदवाड़ा।
Posted By: Nai Dunia News Network
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