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वनाधिकार पट्टों के निरस्त दावों का परीक्षण कर पात्र दावेदारों के दावों को मान्य कर उन्हें वन भूमि में पट्टे प्रदाय करें-मुख्य सचिव श्री बैंस

छिन्दवाड़ा:  राज्य शासन के मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस ने आज भोपाल से वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से निर्देश दिये कि वनाधिकार पट्टों के पूर्व में निरस्त दावों का परीक्षण कर पात्र दावेदार हितग्राहियों के दावों को मान्य कर उन्हें वन भूमि में पट्टे प्रदाय करें। इसमें प्रत्येक निरस्त दावों का अत्यंत सूक्ष्मता के साथ निर्धारित साक्ष्यों के आधार पर परीक्षण करें जिससे कोई भी पात्र दावेदार अपने अधिकार से वंचित नहीं रहे। इस दौरान प्रमुख सचिव वन श्री अशोक वर्णवाल ने निरस्त वनाधिकार पट्टों के दावों को मान्य और अमान्य करने के संबंध में अधिनियम की धारा 13 (1) और धारा 33 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुये विस्तार से जानकारी दी। वीडियो कांफ्रेंस के दौरान छिन्दवाड़ा स्थित एन.आई.सी. कक्ष में कलेक्टर श्री सौरभ कुमार सुमन, वनमंडलाधिकारी श्री आलोक पाठक, अतिरिक्त कलेक्टर श्री राजेश बाथम, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री एन.एस.बरकडे और अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।
      मुख्य सचिव श्री बैंस ने वीडियो कांफ्रेंस में कहा कि 13 दिसंबर 2005 की स्थिति में वन भूमि पर काबिज प्रत्येक दावेदार हितग्राही के दावे को मान्य कर उसे पट्टा प्रदाय करें। इस संबंध में पर्याप्त साक्ष्य के रूप में अधिनियम की धारा 13 (1) में उल्लेखित 9 प्रकार के साक्ष्यों में से किन्ही भी दो साक्ष्यों को मान्य कर दावा स्वीकृत किया जा सकता है। इसमें बुजुर्ग व्यक्तियों के कथन, मतदाता परिचय पत्र, राशन कार्ड, वन भूमि से बेदखल किये जाने संबंधी दस्तावेज, राजस्व अभिलेख, गूगल मैप या अन्य साक्ष्य को आधार माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि निरस्त दावों के परीक्षण में वन अधिकारी अपनी मर्जी से कोई कार्य नहीं करें, बल्कि अधिनियम में उल्लेखित विधि के अनुसार प्रकरणों का निराकरण कर दावेदारों के साथ न्याय करें। उन्होंने कहा कि जिला स्तरीय समिति को यह अधिकार है कि वह साक्ष्यों के आधार पर किसी भी दावे को मान्य या अमान्य करे। उपखंड स्तरीय समिति द्वारा भेजे गये निरस्त दावों की सहमति या असहमति की स्थिति में भी समिति परिस्थिति और साक्ष्य के अनुसार स्पीकिंग आर्डर में दावे से सहमत या असहमत होने का आदेश पारित कर निर्णय ले सकती है। 
      मुख्य सचिव श्री बैंस ने कहा कि वन भूमि में पौधारोपण हो जाने, जंगल होने, आबादी होने या डूब क्षेत्र में आने से किसी दावेदार का अधिकार खत्म नहीं होगा, बल्कि यदि वह 13 दिसंबर 2005 की स्थिति में वन भूमि पर काबिज रहा है तो उसके दावे को मान्य किया जायेगा तथा इस संबंध में राज्य स्तर से जारी दिशा निर्देशों के अनुसार ऐसे दावेदारों के दावों का निराकरण किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जिन पात्र दावेदारों के वारिसों द्वारा नामांतरण और बंटवारे के आवेदन लगाये गये है, उनके दावों को भी मान्य किया जायेगा। वीडियो कांफ्रेंस के दौरान कलेक्टर श्री सुमन ने बताया कि छिन्दवाड़ा जिले में एक हजार 898 निरस्त दावों में से जिला स्तर पर 727 दावों को मान्य और 664 दावों को अमान्य किया गया है तथा 300 दावों का परीक्षण कार्य जारी है।