प्रतीकात्मक रूप से मनाया गया ऐतिहासिक भुजलिया उत्सव
Publish Date: | Wed, 05 Aug 2020 04:03 AM (IST)
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राम मंदिर में समिति सदस्यों ने मनाया सांकेतिक भुजलिया उत्सव
छिंदवाड़ा। नगर शक्तिपीठ श्री बड़ी माता मंदिर एवं श्री राम मंदिर महासंघ चौबे बाबा के पूजन के उपरांत सदियों पुराने कौमी एकता के प्रतीक ऐतिहासिक पर्व भुजरिया को कोविड-19 के प्रकोप के चलते सांकेतिक रूप से मनाया गया। भुजलिया उत्सव समिति के पदाधिकारी एवं संरक्षकों के द्वारा सबसे पहले श्री बड़ी माता जी के पूजन के बाद पांच दोनों को समिति के 5 सदस्यों के द्वारा परंपरागत मार्ग से होते हुए बड़े तालाब में भुजलिया का विसर्जन किया। एक दूसरे को भुजलिया देकर गले मिलकर शुभकामनाएं दी गई। इस मौके पर ईश्वर से प्रार्थना की गई कि कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप को जल्द से जल्द देश और दुनिया को राहत मिले। इस मौके पर समिति के संरक्षक राजू चरणागर, कस्तूरचंद जैन, सतीश दुबे, अरविंद राजपूत, कृष्ण गोपाल सोनी, पप्पू संतोष सोनी, पूर्व पार्षद नसीमुद्दीन खान, समिति अध्यक्ष अजय चरणागर, सचिव कुशल शुक्ला सम्मलित थे।
नहीं लगा भुजलिया का मेला
फोटो 9 सूने रहे कन्हान नदी के दोनों किनारे
दमुआ। कोरोना महामारी के चलते सार्वजनिक जुड़ाव के सारे आयोजनों पर पाबंदी ने बुधवार को कन्हान नदी को सूना कर दिया। रक्षाबंधन पर्व के दूसरे दिन कोयलांचल के इस हिस्से में लगने वाला भुजलिया मेला नहीं लगा। बुंदेलखंड के वीर आल्हा ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ाई के प्रसंग से जुड़ा भुजलिया मेला दमुआ में बरसों से आपसी प्रेम सद्भावना और कौमी एकता की मिसाल बना हुआ था। मेले की वजह से यहां सुबह से ही बच्चों के खेल खिलौनों, मिठाइयों और जीवनोपयोगी सामानों की बिक्री के लिए बाजार सज जाता था। शाम होते होते मेला जब शबाब पर आता था तब प्रीति पुल का नजारा देखने लायक होता था। नदी के दोनों किनारों पर जमा महिलाओं के बीच रंगीन छीटाकशी होती थी।इनके बीच मचने वाली जुबानी जंग देखने और सुनने के लिए लोग वर्ष भर इंतजार करते थे। नदी के सहारे जीवन गुजारने वाला मांझी एकता समाज कन्हान की मंझधार में सुबह से ही झंडा गाड़कर महिलाओं की जुबानी जंग के लिए जमीन तैयार कर देता था। झंडा हथियाने के लिए दोनों किनारों पर जमा महिलाएं जी जान से प्रयास करती थी। इस दौरान उनकी तीखी नोक झोंक और एक दूसरे पर कसे गए तंज दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते थे। बाद में भुजलिया विसर्जन के साथ महिलाओं की लड़ाई आपसी प्रेम भाईचारगी में बदल जाती थी।भुजलिया की बालियों से लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देते थे।
Posted By: Nai Dunia News Network
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