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1971 युद्ध में पुंछ की लड़ाई के हीरो कर्नल पंजाब सिंह का निधन

नई दिल्ली1971 में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग में एक अहम लड़ाई पुंछ के पहाड़ों पर लड़ी गई। दुश्मन यहां से घुसपैठ कर जम्मू-कश्मीर के पुंछ पर कब्जा करना चाहता था लेकिन संख्या में पाकिस्तान सैनिकों से आधे से भी कम होने के बावजूद भारतीय सेना के 6-सिख बटालियन के सैनिकों ने दुश्मन के मंसूबे नाकाम कर दिए। पुंछ की लड़ाई को 1971 की सबसे अहम लड़ाइयों में एक माना जाता है। उस लड़ाई के हीरो ने सोमवार को चंडीगढ़ के आर्मी हॉस्पिटल में आखिरी सांसें लीं। वो कोरोना से रिकवर हो गए थे। एक हफ्ते पहले ही उनके बड़े बेटे का भी दिल्ली में निधन हो गया। वह भी कोरोना से जूझ रहे थे। ऑपरेशन कैक्टस लिली के नायक थे कर्नल पंजाब सिंह कर्नल पंजाब सिंह 6-सिख के कमांडिंग ऑफिसर रहे। 79 साल के कर्नल पंजाब सिंह 1967 में सिख रेजिमेंट की छठी बटालियन में कमिशन हुए। उन्होंने इस बटालियन को 12 अक्टूबर 1986 से 29 जुलाई 1990 तक कमांड किया। 1971 युद्ध के दौरान ऑपरेशन कैक्टस लिली में 6-सिख बटालियन ने पुंछ की चोटियों पर 13 किलोमीटर एरिया में कब्जा किया और दुश्मन को वहां घुसने में नाकाम किया। यहां पर दो सामरिक महत्व के पॉइंट्स हैं, अगर दुश्मन यहां पर घुस जाते तो फिर वह पुंछ पर भी कब्जा कर लेते। दोगुने से भी ज्यादा दुश्मन सैनिकों को किया था परास्त कर्नल पंजाब सिंह उस वक्त मेजर थे और एक कंपनी को कमांड कर रहे थे। दुश्मन की संख्या भारतीय सैनिकों की संख्या से दोगुने से भी ज्यादा थी। 3 दिसंबर 1971 को दुश्मन ने तोप और मोर्टार से फायरिंग की। कर्नल पंजाब सिंह के नेतृत्व में 6-सिख के जवान दुश्मन का मुकाबला कर रहे थे। दुश्मन काफी करीब आ गए थे लेकिन पंजाब सिंह ने अपनी परवाह न करते हुए एक चोटी से दूसरी चोटी तक जाते रहे। उन्होंने सुनिश्चित किया कि जितने भी हथियार हैं, उनसे दुश्मन को इंगेज रखा जाए और उन्हें आगे न आने दें। दुश्मन ने इस पोजिशन पर दो रातों में नौ बार हमला किया लेकिन नाकाम रहे। बेहद दुरूह परिस्थिति में भी पाई फतह एक वक्त ऐसा आया जब भारतीय सैनिकों का बटालियन हेडक्वॉर्टर से भी संपर्क कट गया था और वो दुश्मन की तोप का मुकाबला छोटे हथियारों से कर रहे थे। भारतीय सैनिकों की बहादुरी के आगे दुश्मन असफल रहा। वीरता के लिए कर्नल पंजाब सिंह को वीर चक्र से नवाजा गया। हिमाचल प्रदेश के रहने वाले कर्नल पंजाब सिंह सेना से रिटायर होने के बाद राज्ये के सैनिक वेलफेयर बोर्ड के डायरेक्टर भी रहे। उनके दामाद अभी भारतीय सेना की चिनार कोर के कमांडर के पद पर तैनात हैं।


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