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इंटरव्यू: सचिन पायलट एक असेट हैं लेकिन पार्टी किसी की उम्मीद के हिसाब से फैसले नहीं करती

राजस्थान में कांग्रेस के अंदर एक बार फिर उठापटक तेज हो ती दिख रही है। का धैर्य जवाब दे रहा है। पिछले साल बगावत के बाद जब उन्होंने कांग्रेस में वापसी की थी, तो उम्मीद थी कि उनका और उनके विश्वासपात्र विधायकों का सरकार के अंदर बेहतर समायोजन होगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। पिछले महीने पायलट ने खुलकर कहा, 'कई माह पहले एक कमेटी बनी थी। मुझे विश्वास है कि अब और ज्यादा विलंब नहीं होगा। जो चर्चाएं की गई थीं और जिन मुद्दों पर आम सहमति बनी थी, उन पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई होनी चाहिए।' वहां के हालात को कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व किस नजरिए से देख रहा है, यह जानने के लिए एनबीटी नैशनल ब्यूरो की विशेष संवाददाता मंजरी चतुर्वेदी ने बात की कांग्रेस के राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन से। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश : राजस्थान में आप किस तरह का राजनीतिक माहौल देख रहे हैं? राजस्थान के लोग कांग्रेस के साथ खड़े हैं। पिछले दिनों ही राजस्थान में तीन सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हुए, जिनमें कांग्रेस को 51 फीसदी वोट मिले थे, जो आज तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है। तीन सीटों में से दो सीट हम जीते और एक पर हारे। जो सीट हम हारे, उस पर हम कभी जीते भी नहीं हैं। आम चुनाव में तो हम यह सीट 25 हजार वोटों से हारे थे, लेकिन उपचुनाव में हमारी हार महज 5000 वोटों से हुई। इस लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इसका श्रेय अशोक गहलोत सरकार के कामकाज और कांग्रेस संगठन को जाता है। लेकिन राज्य में गहलोत और सचिन पायलट के बीच उठापटक जारी है। इसका असर पार्टी पर तो पड़ ही रहा होगा? उठापटक के बावजूद अगर कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा उपचुनावों और स्थानीय निकायों के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है तो इसका मतलब साफ है कि लोग कांग्रेस सरकार के कामकाज को पसंद कर रहे हैं। स्थानीय निकाय और विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस को मिले वोट प्रतिशत को देखा जाए, तो 2018 विधानसभा चुनाव की तुलना में 10 फीसदी और 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना में 23 फीसदी ज्यादा वोट मिले। दो दिन पहले सचिन पायलट समर्थक कहे जाने वाले एक विधायक ने इस्तीफा दे दिया है, यह क्या चिंता का विषय नहीं है? वह पार्टी का आंतरिक मामला है, जिसे हम आपस में बैठ कर सुलझा लेंगे। कांग्रेस हाइकमान ने पायलट गुट की शिकायतों को दूर करने के लिए एक कमिटी बनाई थी, लेकिन इस कमिटी ने आज तक कुछ नहीं किया। क्या यह सचिन को नजरअंदाज करते रहने की रणनीति का हिस्सा है? ऐसा किसी रणनीति के तहत नहीं हो रहा है। अगर ऐसा कोई सोच रहा है तो वह गलत है। राजस्थान में जब वह कमिटी बनी थी तो हमारे सीनियर नेता अहमद पटेल उसके सदस्य थे। वह बीमार पड़ गए, बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसकी वजह से कमिटी अपना काम नहीं कर पाई। उसके बाद उपचुनाव और देश भर में कोरोना की दूसरी लहर। इस वजह से राजनीतिक फैसले लेने का कोई औचित्य नहीं बनता। वैसे सचिन की जो उम्मीदें हैं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से वह कब तक परवान चढ़ सकती हैं? पार्टी किसी की उम्मीद के हिसाब से फैसला नहीं करती। सचिन पार्टी के लिए एक ऐसेट हैं। वह हमारे स्टार कैंपेनर हैं। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने में उनका बड़ा योगदान है। आने वाले दिनों में पार्टी इन सब चीजों को ध्यान में रखकर ही उन्हें भूमिका सौंपेगी। पांच राज्यों के नतीजों ने कांग्रेस की कमजोरी को फिर सामने लाकर खड़ा किया है। आखिर कहां चूक रही है कांग्रेस? कांग्रेस अध्यक्ष ने अशोक चव्हाण के नेतृत्व में इन चुनावी नतीजों पर जो कमिटी बनाई है, वह सारे सवालों का जवाब ढूंढ रही है। उसकी रिपोर्ट आने से पहले किसी का भी कुछ बोलना उचित नहीं होगा। कोरोना को लेकर कांग्रेस बीजेपी सरकारों पर कुप्रबंधन का आरोप लगा रही है, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में भी स्थितियां कोई बहुत अच्छी तो नहीं? कांग्रेस शासित प्रदेशों की स्थितियां कहीं बेहतर हैं। अगर वैक्सिनेशन की बात की जाए तो कांग्रेस शासित राज्यों में उसकी दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के घनी आबादी वाले शहरों को देखें तो वहां प्रति व्यक्ति संक्रमण दर और मृत्यु दर पूरे देश में सबसे कम है। सबसे खराब स्थिति यूपी, बिहार और असम की है, जहां बीजेपी सत्ता में है। कहा जा रहा है कि इस चुनौतीपूर्ण वक्त में विपक्ष को रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए, क्या ऐसा हो रहा है? हेल्थ से जुड़ी संसद की स्थायी समिति की बैठक में विपक्ष के सदस्यों ने ऑक्सिजन का इंतजाम करने पर जोर दिया था। विपक्ष लगातार सरकार से देश में ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की बात कहता रहा। वैक्सीन की उपलब्धता के लिए कंपलसरी लाइसेंसिंग की सलाह दी। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर पांच सुझाव भेजे, तो दूसरी ओर से बेहद घटिया शब्दों में जवाब दिया गया। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सरकार को सुझाव भेजे तो उसका रूखा जवाब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की ओर से आया। विपक्ष और क्या कर सकता था? विपक्ष सरकार में तो है नहीं, फैसला लेने का अधिकार तो सरकार के हाथ में है।


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