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सुशील कुमार से पद्मश्री छीनने की हुई बात तो सुब्रमण्य स्वामी ने अमर्त्य सेन पर साधा निशाना, जानें क्यों

नई दिल्ली ओलिंपिक मेडल विजेता पहलवान से पद्मश्री अवॉर्ड वापस लेने की आशंकाओं के बीच बीजेपी के कद्दावर नेता ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री से भी भारत रत्न अवॉर्ड वापस लेने की मांग कर दी है। उन्होंने कहा है कि अगर सुशील कुमार को हत्या के आरोप में पद्म पुरस्कार से वंचित किया जा सकता है तो भ्रष्टाचार के मामले में प्रफेसर सेन को क्यों बख्शा जाए? स्वामी ने नए सिरे से उठाया अमर्त्य सेन का मुद्दा स्वामी ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया की सुशील कुमार से जुड़ी खबर पर यह प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस खबर के ट्वीट पर टिप्पणी की, "अगर ऐसा है तो सोनिया गांधी के आदेश पर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की तरफ से अमर्त्य सेन को दिया गया भारत रत्न अवॉर्ड भी वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार किया है जो कैग और डॉ. कलाम की रिपोर्टों में दर्ज है।" स्वामी ने ToI के जिस ट्वीट पर प्रतिक्रिया दी है, उसमें लिखा है, "क्या सुशील कुमार को पद्म (पुरस्कार) से हाथ धोना पड़ेगा? सरकार सोच-समझकर फैसला लेगी।" अमर्त्य सेन पर भ्रष्टाचार का क्या है मामला दरअसल, सुब्रमण्यन स्वामी अमर्त्य सेन पर भ्रष्टाचार के जिस आरोप की बात कर रहे हैं, वो नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ है। स्वामी ने 2025 में आरोप लगाया था कि सेन जब नालंदा यूनिवर्सिटी के चांसलर थे तब उन्होंने करदाताओं के 3,000 करोड़ रुपये का अंधाधुंध खर्च किया था। स्वामी ने इसके साथ ही सेन पर कुछ और आरोप मढ़े। स्वामी के अमर्त्य सेन पर आरोप उन्होंने कहा था, "भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने दुखी होकर 2011 में यूनिवर्सिटी के विजिटल पोस्ट से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने सेन के मनमानी और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाइयों के खिलाफ आवाज उठाई थी।" बीजेपी नेता ने कहा था कि इन सबसे पहले वित्त मंत्रालय ने भी स्पेशल डिस्पेंसेशन फंड के खर्चे में डॉ. सेन की मनमानी पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने दावा किया था कि अमर्त्य सेन ने नालंदा यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में 50 लाख रुपये का वार्षिक वेतन लिया था। उन्होंने कहा कि जब सेन अमेरिका में रहते हैं और कभी-कभार ही भारत आते हैं तो फिर उन्हें इतनी बड़ी रकम क्यों दी जा रही थी? स्वामी ने सीबीआई से की थी सेन की शिकायत स्वामी ने यह कहते हुए सरकार से सेन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में विश्वविद्यालय निर्माण के खर्च में कई तरह की गड़बड़ियों का जिक्र है। उन्होंने कहा था कि अगर सरकार ने ऐक्शन नहीं लिया तो वो कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करेंगे। बाद में स्वामी ने सीबीआई से इसकी शिकायत की और अमर्त्य सेन के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दायर कर जांच की मांग की थी। लोकसभा में सरकार ने क्या दिया था जवाब सुब्रमण्यन स्वामी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में जिस भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, उससे संबंधित प्रश्न लोकसभा में पूछे गए थे। सरकार ने 5 अप्रैल, 2017 को एक में भ्रष्टाचार को लेकर स्थिति साफ नहीं की थी। सरकार ने कहा था, "कैग के साथ-साथ विदेश मंत्रालय की तरफ से भी नालंदा यूनिवर्सिटी के अकाउंट्स की ऑडिटिंग की गई है। उन्होंने यूनिवर्सिटी की तरफ से किए गए खर्चों में कुछ प्रक्रियागत गड़बड़ियां पकड़ी हैं। नालंदा यूनिवर्सिटी ने ऑडिट अथॉरिटीज को अपना जवाब भेजा है।" सरकार ने आगे कहा, "विदेश मंत्रालय को यूनिवर्सिटी में गड़बड़ियों की शिकायत मिली थी जिन पर जरूरी कार्रवाई के लिए यूनवर्सिटी की अथॉरिटीज को भेज दिया गया है। यूनिवर्सिटी ने इन आरोपों को झूठा, आधारहीन और अपमानजनक बताया है।" ध्यान रहे कि बिहार के वैशाली स्थिति नालंदा यूनिवर्सिटी एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। इस कारण इसका संचालन भारत के विदेश मंत्रालय की देखरेख में होता है। यही वजह है कि यूनिवर्सिटी पर फंड के दुरुपयोग का आरोप लगा तो विदेश मंत्रालय ने भी इसकी जांच की। पूर्व राष्ट्रपति कलाम का मामला क्या है बहरहाल, बताते चलें कि नालंदा यूनिवर्सिटी ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की तरफ से 2015 में लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने यूनिवर्सिटी के विजिटर पोस्ट इस्तीफा नहीं दिया था बल्कि उन्होंने यह पद स्वीकार ही नहीं किया था क्योंकि तब वो राष्ट्रपति पद पर नहीं थे। चूंकि यूनिवर्सिटी के रूल बुक में विजिटर का पद तत्कालीन राष्ट्रपति के लिए ही रखा गया है, इसलिए डॉ. कलाम ने ऑफर ठुकरा दिया था और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने विजिटर पद ग्रहण किया था।


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