इंटरव्यूः 'पंजाब में अकाली दल ने हमारी नैया डुबोई अब उससे गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं'
अगले साल के शुरुआती महीनों में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें पंजाब भी शामिल है। यही वजह है कि अब पंजाब का भी सियासी माहौल गरमाता जा रहा है। सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए है। वह अभी तक वहां अकाली दल के साथ रहा करती थी। इस चुनाव में बगैर अकाली दल के उसे अपनी ताकत साबित करनी है। अभी पार्टी यह भी नहीं तय कर पाई है कि वह किसका चेहरा आगे कर चुनाव लड़ेगी। बीजेपी की चुनाव मैदान में जाने की क्या तैयारी है, यह जानने को एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बात की पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पंजाब के प्रभारी से। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :
पंजाब में चुनाव को ज्यादा वक्त नहीं बचा है, आप वहां पार्टी का क्या भविष्य देख रहे हैं?
पंजाब के लोग सबको आजमा चुके हैं। कांग्रेस को भी, अकाली दल को भी। वहां हमारी पार्टी बेहतर विकल्प के रूप में खड़ी है। वहां पर हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है, पाने की ही गुंजाइश है।
लेकिन पंजाब में तो आप अकाली दल के ही भरोसे रहा करते हैं। इस बार आपका सबसे पुराना सहयोगी साथ नहीं होगा...
अच्छा है कि साथ नहीं होगा। पिछले चुनाव में आपने देखा ही होगा, उन्होंने अपनी नैया डुबोई ही, हमारी भी डुबो दी। पब्लिक बीजेपी से कतई नाराज नहीं थी, लेकिन अकाली दल के साथ हमें उसका नुकसान उठाना पड़ गया। पंजाब के लोग अकाली दल से नाराज थे, कांग्रेस को भी लाना नहीं चाह रहे थे, इसी वजह से वहां आम आदमी पार्टी के लिए जगह बन गई। यूं समझ लीजिए अकाली दल से हमें फायदा कम हुआ, नुकसान ज्यादा।
क्या ऐसी कोई संभावना है कि राज्य में कांग्रेस को रोकने के लिए अकाली दल और बीजेपी फिर हाथ मिला लें?
ऐसी कोई संभावना नहीं है। हम अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं। सभी राज्य अब बीजेपी और नरेंद्र मोदी के साथ चलना चाहते हैं। जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का आधिपत्य माना जाता रहा है, वहां भी वोटरों की पहली पसंद बीजेपी बन रही है। महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, अगर शिवसेना के लिए हमने सीटें नहीं छोड़ी होतीं, तो स्पष्ट बहुमत हमारा होता। बंगाल में हम सरकार नहीं बना पाए, लेकिन हमारी सीटें और वोट प्रतिशत देखिए। असम में हमने दोबारा जीत दर्ज की, जबकि वहां विरोधियों ने हमें घेरने की कोई कसर बाकी नहीं रखी थी।
लेकिन पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल दोनों के पास मुख्यमंत्रियों के चेहरे हैं, जबकि बीजेपी का कोई घोषित चेहरा नहीं है?
मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ा जाएगा या बगैर चेहरे के लड़ा जाएगा, यह फैसला चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद पार्लियामेंट्री बोर्ड करेगा। इसलिए मैं अभी से कुछ नहीं कह सकता, लेकिन इतना बता सकता हूं कि चेहरा घोषित करने या नहीं करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। वोटर नरेंद्र मोदी जी और बीजेपी को वोट करता है, वह किसी चेहरे पर वोट नहीं करता। यूपी का ही उदाहरण देख लीजिए। वहां एक तरफ मायावती का चेहरा था, दूसरी तरफ अखिलेश यादव का था, बीजेपी ने बगैर सीएम घोषित किए चुनाव लड़ा और 300 से ज्यादा सीटें जीत लीं।
पंजाब में इस वक्त कांग्रेस के अंदर बहुत उठापटक चल रही है। इसका क्या असर आप वहां की सियासत पर देखते हैं?
कांग्रेस में जो चल रहा है, उसे मैं उठापटक नहीं, बंटवारे की लड़ाई मानता हूं। वहां लड़ाई इस बात की है कि तुमको ज्यादा मिल गया, मुझे नहीं मिला। पांच साल किया कुछ नहीं। अब चुनाव सिर पर है तो जनता को क्या जवाब दिया जाए, यह उन लोगों की समझ में नहीं आ रहा। इसलिए आपस में ही एक-दूसरे का कुर्ता फाड़ने में लग गए हैं। हमें उससे कोई लेना-देना नहीं। हम नशामुक्त और खुशहाल पंजाब के वादे के साथ चुनाव में जाएंगे।
असम में बीजेपी ने कांग्रेस से हिमंत बिस्व सरमा को लिया था, बंगाल के चुनाव में टीएमसी से शुभेंदु अधिकारी को ले लिया। पंजाब में भी क्या ऐसे कुछ नेताओं पर आपकी नजर है?
बीजेपी की नीतियों और नेतृत्व के प्रति जिनका भी विश्वास है, उन सभी का बीजेपी में स्वागत है। हम लोकतांत्रिक पार्टी हैं, इसमें आने के लिए किसी पर पाबंदियां नहीं हैं।
नवजोत सिंह सिद्ध कांग्रेस में खुद को सहज नहीं पा रहे हैं, उनके लिए पार्टी के दरवाजे खुले हैं या नहीं?
ऐसे लोगों को पार्टी में वापस लेना है या नहीं लेना है, यह फैसला किसी एक व्यक्ति का नहीं होगा। इसके लिए हमारा नेतृत्व सामूहिक विचार विमर्श के बाद फैसला लेगा।
किसान आंदोलन का क्या असर पंजाब चुनाव पर पड़ता देखते हैं, खास तौर पर बीजेपी के संदर्भ में?
किसानों के हक में जितने फैसले नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने लिए हैं, उतने तो शायद पूर्ववर्ती किसी भी सरकार ने नहीं लिए। रही बात किसान आंदोलन की तो मुझे तो नहीं लगता कि कहीं किसान आंदोलित भी हैं। बस कुछ नेता हैं जो किसानों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाए रखना चाहते हैं।
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