हिमंत बिस्वा सरमा को सीएम बनाकर बीजेपी ने असम से सिंधिया के लिए संदेश भेजा है, आप भी जानिए क्या है इसमें

भोपाल रविवार को बीजेपी ने असम के लिए नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर कई निशाने साध लिए। सर्वानंद सोनोवाल की जगह को यह पद देकर बीजेपी ने केवल उनकी पुरानी इच्छा पूरी नहीं की, बल्कि कई अन्य नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी हवा दे दी। खासकर उन नेताओं को जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए हैं या ऐसी इच्छा रखते हैं, लेकिन कैडर आधारित पार्टी में अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं। इनमें राज्यसभा सांसद भी शामिल हैं जो मार्च, 2020 में बीजेपी में आने के बाद से पार्टी की ओर से कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने की प्रतीक्षा में हैं। करीब सवा साल पहले जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था तो उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने की चर्चा जोर-शोर से चली थी। यह भी कहा गया था कि उनके समर्थकों को पार्टी संगठन में एडजस्ट किया जाएगा। सिंधिया अपने साथ करीब 25 विधायकों को लेकर आए थे जिसके चलते मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई और बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिल गया। शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तो सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद मिला, लेकिन खुद महाराज अब भी प्रतीक्षा में हैं। कैडर-आधारित होने के चलते बीजेपी के बारे में यह आम धारणा है कि पार्टी में नए आए लोगों को संदेह की नजरों से देखा जाता है। बीजेपी की रीति-नीति में रचे-बसे लोगों को ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती हैं। सुब्रमण्यम स्वामी से लेकर सतपाल महाराज तक इसके कई उदाहरण भी हैं। लेकिन सरमा को मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर बीजेपी ने एक झटके में इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की है। पार्टी ने यह संदेश दे दिया है कि अपनी उपयोगिता साबित करने वाले लोगों को महत्वपूर्ण पद देने से उसे गुरेज नहीं है। 2001 से लगातार विधायक चुने जा रहे सरमा ने कांग्रेस तब छोड़ी थी, जब वे राहुल गांधी से मिलने गए, लेकिन राहुल उनसे मिलने की बजाय अपने कुत्ते से खेलते रहे। सरमा बीजेपी में आए, 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराने में अहम भूमिका निभाई और फिर सर्बानंद सोनोवाल की कैबिनेट में मंत्री बने, लेकिन उनकी इच्छा मुख्यमंत्री बनने की थी। बीजेपी ने 2016 के बाद से सरमा को कई जिम्मेदारियां दी। खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में अपने विस्तार के लिए पार्टी ने उनका इस्तेमाल किया और सरमा पार्टी की उम्मीदों पर हर बार खरे उतरे। हाल में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगातार दूसरी बार सत्ता में आई तो पार्टी ने सरमा को मुख्यमंत्री का पद दे दिया। इस फैसले में सिंधिया के लिए स्पष्ट संदेश है कि बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी के लिए उन्हें धैर्य रखने के साथ अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी। सिंधिया मध्य प्रदेश की राजनीति में सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, लेकिन नवंबर में हुए विधानसभा के उपचुनावों में चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में बीजेपी को वह कामयाबी नहीं दिला पाए जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही थी। सिंधिया के समर्थक गाहे-बगाहे उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन सरमा का फैसला यह संकेत है कि इसके लिए उन्हें पहले परफॉर्म करना होगा। यह संदेश सिंधिया के साथ उनके मित्र और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री के लिए है। राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले पायलट मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने से असंतुष्ट हैं और कई बार इसे खुले तौर पर जता भी चुके हैं। बीच-बीच में उनके कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाने की चर्चाएं भी जोर पकड़ती रहती हैं। वे शायद बीजेपी में जाकर भी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी होने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने पायलट और उन जैसे दूसरे नेताओं को भी संदेश दे दिया है। संदेश स्पष्ट है- बीजेपी में आइए, परफॉर्म कीजिए और पद लेकर जाइए।
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