लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है...
कोरोना महाआपदा में चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और उनसे उत्पन्न डर और हताशा के बीच ऐसे समाचार और दृश्य भी सामने आ रहे हैं जो उम्मीद पैदा करते हैं। विकट परिस्थिति में देश का बड़ा समूह भारी जोखिम उठाकर भी समर्पण और संकल्प के साथ सेवा भाव से काम करने को तत्पर है। वास्तव में कोई भी आपदा अकेले केवल सरकारों के लिए चुनौतियां खड़ी नहीं करती, समाज के लिए भी करती है। समाज का बड़ा समूह इसे समझता है तो वह अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खड़ा होता है और उन चुनौतियों को दूर करने या कम करने की यथासंभव कोशिश करता है।
एक संवेदनशील, सतर्क और सक्रिय समाज का यही लक्षण है। तमाम हाहाकार और कोहराम के बीच हमारे सामने ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं, जिनमें धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और स्वयंसेवी संगठन और निजी स्तर पर भी लोग अपने-अपने तरीकों से पीड़ितों और जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं।
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