बंगाल में हुई हिंसा से हालात खराब, पलायन रोकने की मांग पर SC ने केंद्र और राज्य से मांगा जवाब
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर और पश्चिम बंगाल से जवाब दाखिल करने को कहा है जिसमें कहा गया है कि राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण हो रहे पलायन को रोका जाए। साथ ही कहा गया है कि जो लोग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि एनएचआरसी और एनसीडब्ल्यू (राष्ट्रीय महिला आयोग) को भी पार्टी बनाया जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद स्थिति काफी खराब हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार अपना जवाब दाखिल करें और अगली सुनवाई के लिए 7 जून की तारीख तय कर दी गई है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई
मामले की सुनवाई के दौरान मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद पेश हुईं। उन्होंने दलील दी कि चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए हैं और पलायन को मजबूर हुए हैं। इस मामले में एनएचआरसी से लेकर एनसीडब्ल्यू ने भी संज्ञान लिया है। उन्हें भी प्रतिवादी बनाया जाना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने एनएचआरसी और एनसीडब्ल्यू को भी पक्षकार बनाने को कहा है। पिंकी आनंद ने कहा कि जो लोग भी अपने घर से डर के भागे हैं और कैंप में और शेल्टर होम में शरण लिए हुए हैं, उनका पुनर्वास किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक पक्ष को सुनकर आदेश पारित नहीं करेंगे। हम चाहते हैं कि दूसरा पक्ष भी मामले में अपना जवाब दाखिल करे।
एक लाख से ज्यादा लोगों का पलायन
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस बीआर गवई की बेंच के सामने 21 मई को सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद ने ये मामला उठाया था और कहा था कि पश्चिम बंगाल में चुनाव से संबंधित हिंसा के कारण अब तक एक लाख से ज्यादा लोग वहां से पलायन कर चुके हैं। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता अरुण मुखर्जी और अन्य की ओर से अर्जी दाखिल की गई है। अर्जी में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में दो मई से हिंसा शुरू हुई है। लोग प्रभावित और प्रताड़ित हुए हैं। याचिका में कहा गया है कि जो भी हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें पुलिस और राज्य सरकार की शह मिली हुई है। इस कारण पुलिस पूरे मामले में चुप है। लोगों को इस बात के लिए धमकी दी जा रही है कि वह केस दर्ज न कराएं। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि इन विषम परिस्थितियों में लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हो रहे हैं। लोग राज्य में और राज्य के बाहर शेल्टर हाउस में रहने को मजबूर हैं। पश्चिम बंगाल में लोगों के इस तरह के पलायन से उनके जीवन के अधिकार का हनन हो रहा है। इनके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और ऐसे लोगों को पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है। इन पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की भी गुहार लगाई गई है।
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