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US में 12 साल के बच्चों को लगेगी कोरोना वैक्सीन, क्या भारत में भी टीके लगवा स्कूल जाएंगे छात्र

नई दिल्ली अमेरिका में 12 से 15 साल तक के बच्चों को भी फाइजर (Pfizer) की कोरोना वैक्सीन लगाई जाएगी। इसका मकसद मिडल और हाई स्कूल के स्टूडेंट्स को क्लासरूम में भेजने से पहले संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करना है। भारत में भी कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण बोर्ड एग्जाम कैंसल कर दिए गए जबकि 12वीं की परीक्षा की तिथि टाल दी गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में भी बच्चों को स्कूल वापस ले जाने के लिए उन्हें वैक्सीन लगवाने पर विचार करेगी? सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि कोरोना वैक्सीन बच्चों को क्यों नहीं लगाया जा रहा है? क्या यह बच्चों को लगाने लायक नहीं है या फिर वैक्सीन की उपलब्धता की समस्या है? या फिर कोई और कारण है? ध्यान रहे कि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, फाइजर की वैक्सीन, मॉडर्ना की वैक्सीन, स्पूतनिक वैक्सीन आदि ही दुनियाभर में प्रमुखता से लगाई जा रही है। इन सभी वैक्सीन का ट्रायल युवाओं और बुजुर्गों पर ही किया गया था। इस कारण दुनियाभर के देशों में टीकाकरण अभियान की शुरुआत बुजुर्गों और युवाओं से ही हुई। कनाडा में 12 वर्ष के बच्चों को वैक्सीन लगनी शुरू हो भी चुकी हालांकि, अब कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देशों में बजुर्गों को कवर कर लेने के बाद वहां के सरकारों की नजर अब बच्चों की तरफ गई है। कई देशों में 16 वर्ष तक के किशोरों को फाइजर की वैक्सीन लगाई जा रही है। कनाडा ने तो 12 वर्ष के बच्चों को भी टीका लगाना शुरू कर दिया है। दरअसल, कोरोना काल में बच्चों की खराब होती पढ़ाई से पैरेंट्स, टीचर और शैक्षिक संगठन भी चिंतित हैं। सभी चाहते हैं कि बच्चों को कोरोना के खिलाफ सुरक्षा कवच दे दिया जाए ताकि वो जल्दी से जल्दी अपनी-अपनी कक्षाओं में लौट सकें। वैक्सीन की कमी से जूझ रहा भारत अगर भारत की बात करें तो यहां वैक्सीन की उपलब्धता का संकट है। कनाडा ने जहां अपनी आबादी से नौ गुना, यूके ने 7 गुना जबकि अमेरिका ने 4 गुना वैक्सीन खरीद रखी है। भारत की बात करें तो अमेरिका ही अकेला देश है जिसने मात्रा के लिहाज से भारत से ज्यादा वैक्सीन खरीदी है। चूंकि भारत आबादी में अमेरिका से करीब चार गुना ज्यादा है तो प्रति व्यक्ति के लिहाज से भारत में अभी 0.2 वैक्सीन ही उपलब्ध हो पाई है। हालांकि, वैक्सीन उत्पादन का कार्य जोरों पर है क्योंकि टीकाकरण अभियान की रफ्तार बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है। भारत में लगातार बढ़ाई जा रही वैक्सीन प्रोडक्शन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज ही वैक्सीन की कमी का मुद्दा उठाया और कहा कि देश की सारी वैक्सीन उत्पादक कंपनियों में कोरोना का टीका बनाया जाए। उन्होंने केंद्र सरकार से कहा कि वो सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और भारत बायोटेक से वैक्सीन का फॉर्म्युला लेकर बाकी टीका उत्पादक कंपनियों से साझा करे ताकि टीके का उत्पादन बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सके। देश में फिलहाल वयस्कों के टीकाकरण पर फोकस ऐसे में साफ है कि भारत में तो बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं जा पा रहा है क्योंकि अभी 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में टीका उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। ध्यान रहे कि भारत में अपने यहां उत्पादन हो रहे कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीके ही लगाए जा रहे हैं। रूस की स्पूतनिक वैक्सीन भी आ चुकी है, लेकिन उसे लगाने का काम अभी शुरू नहीं हुआ है। ऐसे में फाइजर, जॉनसन ऐंड जॉनसन (J&J) समेत अन्य कंपनियों की वैक्सीन को भी भारत में मान्यता देने की मांग हो रही है। फाइजर और मॉडर्ना ने बच्चों पर शुरू कर दिया है ट्रायल जहां तक बात बच्चों को लगाने के लिहाज से उपयुक्त वैक्सीन तो सिर्फ फाइजर ही नहीं, मॉडर्ना ने भी बच्चों में ट्रायल शुरू कर दिया है। मॉडर्ना ने कहा है कि उसने 12 से 17 वर्ष के बच्चों में अपनी वैक्सीन का ट्रायल किया है जिसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखा है। एक अन्य कंपनी नोवावैक्स ने भी इस आयुवर्ग के बच्चों पर स्टडी करना शुरू कर दिया है। एस्ट्राजेनेका भी ब्रिटेन में 6-17 वर्ष के बच्चों पर कर रही है ट्रायल उधर, इन कंपनियों की नजर अब 12 वर्ष से भी कम बच्चों पर है। फाइजर और मॉडर्ना, दोनों कंपनियों ने छह महीने से 11 वर्ष के बच्चों पर वैक्सीन के प्रभाव का अध्ययन करने की प्लानिंग कर रही हैं। एस्ट्राजेनेका ब्रिटेन में 6 से 17 साल के बच्चों पर यही प्रयोग कर रहा है। चीन की कंपनी सिनोवाक ने कहा है कि उसकी वैक्सीन तीन साल तक के बच्चे पर भी असरदायी है और उसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। बच्चों का ध्यान रखना ही होगा एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर कुल आबादी के 70 से 85 प्रतिशत को कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यून करने का लक्ष्य है तो टीकाकरण अभियान में बच्चों को भी शामिल करना ही होगा। वैसे बच्चों में अब तक कोरोना वायरस का बहुत गंभीर परिणाम देखने को नहीं मिल रहा है। अमेरिका में करीब 14 प्रतिशत बच्चों में कोरोना वायरस के मामले पाए गए हैं।


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