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1998 में महल को ललकारा, माधवराव सिंधिया को दिखाया हार का 'डर', 23 साल बाद उस नेता के घर 'महाराज'

ग्वालियर 23 साल बाद (Jyotiraditya Scindia) और (Jaibhan Singh Pawaiya) के बीच की दूरियां खत्म हो गई हैं। शुक्रवार को दुश्मनी की सारी बेड़ियां टूट गईं और नए रिश्ते का आगाज हुआ है। हम बात कर रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयभान सिंह पवैया की मुलाकात की। ये वहीं पवैया हैं, जिन्होंने 1998 के लोकसभा चुनाव में (Madhavrao Scindia)को जीत के लिए संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया। लाखों वोटों से चुनाव जीतने वाले माधव राव सिंधिया को सिर्फ 28 हजार वोटों से जीत मिली थी। माधवराव सिंधिया को चुनाव में जीत तो मिल गई थी लेकिन इतने कम वोटों से मिलेगी, उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी। इस चुनौती ने उन्हें इतना कचोटा कि अगले चुनाव में उन्होंने सीट ही बदल लिया। उसके बाद गुना से चुनाव लड़ने चले गए, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनाव लड़ते हैं। यहीं सियासी अदावत बाद में दुश्मनी में बदल गई। अक्खड़ मिजाज के जयभान सिंह पवैया लगातार सिंधिया परिवार को ललकार रहते। चुनावी सभाओं में खुलेआम महल को सामंतवादी कहते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी भी नहीं दे पाए थे चुनौती 1984 में लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी ग्वालियर से चुनाव लड़े थे। मगर माधवराव सिंधिया को उस तरह से चुनौती नहीं दे पाए थे। करीब पौने दो लाख वोटों से अटल बिहारी वाजपेयी माधवराव सिंधिया से चुनाव हार गए थे। ग्वालियर में जीत के लिए माधवराव को संघर्ष करने के लिए 1998 में पवैया ने ही मजबूर किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सल्तनत को भी हिलाया अक्खड़ मिजाज के पवैया ने 2004 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया को सीट छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। पवैया ग्वालियर से ही चुनाव लड़े और जीत गए। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में वह गुना से चुनावी मैदान में उतरे, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ रहे थे। हिंदूवादी इमेज वाले पवैया ने पूरी ताकत के साथ यहां से चुनाव लड़ा और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सल्तनत को हिला दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता यहां से दो से चार लाख वोटों चुनाव जीतते रहे हैं। पवैया के आगे सिंधिया को महज एक लाख 20 हजार वोटों से जीत मिली थी। पवैया की तरफ से तैयार जमीन का फायदा बीजेपी को 2019 में मिला है और ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी के केपी यादव से चुनाव हार गए। 23 साल तक दोनों ने एक-दूसरे के घर नहीं रखा कदम इसी सियासी अदावत की वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयभान सिंह पवैया के बीच दुश्मनी बढ़ती गई। बीते 23 सालों में दोनों ने कभी एक-दूसरे के दर पर कदम नहीं रखा है। करीब एक साल पहले तक दोनों एक-दूसरे पर गोले बरसाते थे। सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद परिस्थितियां बदल गईं और दिलों की दूरियां भी मिट गई हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद ही पहल की है और जयभान सिंह पवैया के घर उनके पिता के निधन के डेढ़ महीने बाद पहुंच गए। दोनों में लंबी बातचीत हुई। अतीत-अतीत है... बंद कमरे में पवैया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच करीब आधे घंटे तक बात हुई है। मुलाकात के बाद दोनों मीडिया के सामने आए तो रिश्तों में नया उमंग नजर आ रहा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि 'नया संबंध, एक नया रिश्ता, हम दोनों ने कायम की है...अतीत-अतीत होता है, वर्तमान में हम और पवैया जी दोनों कार्यकर्ता हैं'। अक्खड़ मिजाज हैं पवैया जयभान सिंह पवैया अपने बेबाक और विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। बाबरी आंदोलन में भी उनका नाम था। वह बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। उनके अक्खड़ मिजाजी के कई किस्से मशहूर हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पवैया गुना-शिवपुरी से उम्मीदवार थे। सुषमा स्वराज उनके लिए प्रचार करने आई थीं। उन्हें रिसीव करने कोई नहीं पहुंचा। इससे नाराज होकर सुषमा स्वराज ने सबके सामने कहा था कि तुम हवा में उड़ रहे हो पवैया। उसके बाद वह शिवपुरी से चली गई थीं। ग्वालियर-चंबल में नई राजनीति की शुरुआत दोनों के मन से 23 साल बाद दुश्मनी के मैन मिट गए हैं तो एमपी की सियासत में इसके मायने भी निकाले जा रहे हैं। ग्वालियर और चंबल की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। ऐसे में वह सबको साथ लेकर चलने की कवायद में लगे हैं। बीजेपी में आने के बाद सिंधिया का अंदाज बिल्कुल बदल गया है। वह अपने करीबियों के घर नहीं, सियासत में धुर विरोधी रहे लोगों के घर जाते हैं। ग्वालियर, भोपाल और इंदौर दौरे के दौरान यहीं देखने को मिल रहा हैं।


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